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सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में क्या भारत में बदलेगा चुनाव प्रचार का रंग-ढंग

Updated Apr 30, 2020 | 15:29 IST

Social distancing and election compaign: जनीतिक पार्टियां अपनी सोच, विचारधारा और मुद्दे के साथ जनता से जुड़ती हैं और उनसे संवाद स्थापित करते हुए अपने जनाधार का विस्तार करती हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
क्या भारत में बदलेगा चुनाव प्रचार का अंदाज।
मुख्य बातें
  • कोरोना महामारी को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर दे सकते हैं राजनीतिक दल
  • बिहार में साल के अंत में होने हैं विधानसभा चुनाव, सोशल मीडिया पर बढ़ेगी सक्रियता
  • भारत की रैलियों में अपने नेता को सुनने के लिए लाखों की संख्या में उमड़ते हैं लोग

भारत एक लोकतांत्रित देश है। यहां हर साल किसी न किसी तरह के चुनाव होते हैं। राजनीतिक पार्टियां अपनी सोच, विचारधारा और मुद्दे के साथ जनता से जुड़ती हैं और उनसे संवाद स्थापित करते हुए अपने जनाधार का विस्तार करती हैं। भारत में ऐसा ही होता आया है। यह अलग बात है कि तकनीक का विकास होने के साथ लोगों से जुड़ने और उनसे संवाद स्थापित करने के लिए आज डिजिटल मीडियम उपलब्ध हो गए हैं। राजनीतिक पार्टियां अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का खूब इस्तेमाल कर रही हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों की उपलब्धता के बावजूद भारत में लोगों से जुड़ने के लिए परंपरागत तरीके पर ही जोर दिया जाता है। 

रैलियों में उमड़ती है लाखों की भीड़
चुनावों में लोगों से संपर्क करने के रैली, डोर टू डोर अभियान, बैठकें, टाउनहॉल मीटिंग और रोड शो मुख्य माध्यम हैं। सवाल है कि कोविड-19 की महामारी के बाद क्या यह पहले की तरह चल पाएगा? चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 महामारी का साया अभी हटने वाला नहीं है। महामारी को खत्म करने में भले ही तत्कालिक सफलता मिल जाए लेकिन इसके लौटने का डर लंबे समय तक लोगों को सताता रहेगा। कोरोना के प्रकोप से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर यदि जारी रहा तो रैलियों, सभाओं और बैठकों से लोग बचेंगे क्योंकि भारत की रैलियों में अपने नेता को सुनने को सुनने के लिए लाखों की संख्या में जनता की भीड़ उमड़ती है। 

सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर सकते हैं दल
सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए राजनीतिक पार्टियां भी इस तरह के आयोजनों से खुद को दूर रखने की कोशिश करेंगी। ऐसे में लोगों तक पहुंचने के लिए राजनीतिक दलों के पास सोशल मीडिया जैसे मंच मौजूद होंगे। यानि कि आने वाले समय में लोगों तक अपनी बात पहुंचाने और उनसे जुड़ने के लिए  राजनीतिक दल इन मीडिया प्लेटफॉर्मों पर अपनी सक्रियता बढ़ाते नजर आ सकते हैं। लोगों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया से ज्यादा आसान और सुलभ तरीका अभी और कोई नहीं है। 

सोशल मीडिया पर बढ़ेगी सक्रियता
इसे देखते हुए आने वाले समय में राजनीतिक दल सोशल मीडिया का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करते नजर आ सकते हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद चुनाव प्रचार में सोशल मीडिया फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब का अहम रोल रहा है। सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत और इन मंचों पर लोगों की सक्रियता ने राजनीतिक दलों को इन मंचों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया है।   

बिहार में होने हैं विधानसभा चुनाव
कोरोना के इस दौर में सबसे पहले चुनाव बिहार में होना है। जाहिर है कि इस राज्य का चुनाव यदि आगे नहीं टला तो राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार में आना पड़ेगा। बिहार में सोशल मीडिया के जरिए लोगों से संपर्क स्थापित करना राजनीतिक दलों के लिए एक चुनौती होगी क्योंकि राज्य की एक बड़ी आबादी अभी भी सोशल मीडिया से दूर है। उनके पास स्मार्टफोन नहीं है और वे फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर भी नहीं हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों को प्रचार के लिए अपने स्थानीय नेताओं एवं कार्यकर्ताओं पर ज्यादा निर्भर रहना होगा। सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में मतदान संपन्न कराना चुनाव आयोग के लिए भी एक चुनौती होगी। 

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