- असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने वीर सावरकर पर लिखी पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में की शिरकत
- सरमा बोले- धर्म की वजह से नहीं होना चाहिए खून-खराबा
- हमारे बीच में कट्टरता लाने की वजह लेफ्ट लिबरल हैं- हिमंत बिस्वा
गुवाहाटी : असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शनिवार को कहा कि धर्म का पालन करना खुद को जानने के लिए एक अकादमिक गतिविधि है और यह देश में लोगों के बीच खून-खराबा का कारण नहीं बनना चाहिए। एक पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा सरमा ने कहा, 'धर्म का पालन करना खुद को जानने के लिए एक एकेडमिक एक्टिविटी है और यह रक्तपात तथा देश के खिलाफ गतिविधियों का कारण नहीं बननी चाहिए।'
लेफ्ट लिबरल लाए कट्टरता
मुख्यमंत्री ने कहा, 'लेकिन ये प्रयास (धर्म) के कारण कोई खून खराबा करेगा, कोई देश को तोड़ देगा ये तो नहीं है। ठीक है मुझे मंदिर जाकर शांति मिलती तो मैं उधर जाऊंगा, मुझे मस्जिद जाकर शांति मिलती तो मैं उधर जाऊंगा। देश में कितने हिंदू हैं वो मंदिर भी नहीं जाते हैं और मस्जिद भी नहीं जाते, आराम से घर में बैठकर वो कहते हैं कि मैं किसी की बुराई नहीं करूंगा, भलाई करूंगा। ये हमारे बीच में जो कट्टरता है, वो किसने लाया? ये लेफ्ट और लिबरल लोगों ने लाया है और फिर कांग्रेस ने इसे वोट बैंक के लिए आगे करता गया। देश विभाजन हुआ लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि हर मुसलवान तो पाकिस्तान गया नहीं, यहीं रूक गया। आज विश्व में इस्लामिक देशों की तुलना में भारत में ज्यादा मुस्लिम हैं।'
वामपंथी जिम्मेदार
सरमा ने कहा, 'वामपंथी और उदारवादी हमारे (हिंदू-मुसलमान) के बीच कड़वाहट के लिए जिम्मेदार हैं। कांग्रेस ने इसे वोट बैंक के लिए बढ़ाया। आजादी के बाद, वाम-उदारवादियों ने भारत के अकादमिक पाठ्यक्रम को इस तरह से डिजाइन किया जो विद्रोह पैदा करता है और हमें लड़ने के लिए प्रेरित करता है। वे लोगों के दिमाग से देश के सम्मान को खत्म करने के तरीकों की तलाश करते हैं।'
वीर सावरकर पर आधारित पुस्तक पर चर्चा
असम के मुख्यमंत्री सरमा गुवाहाटी में वीर सावरकर पर आधारित एक पुस्तक पर चर्चा कर रहे थे और उन्होंने 'आज के समय में सावरकर की प्रासंगिकता पर एक शक्तिशाली भाषण' दिया। वीर सावरकर पर पुस्तक के लेखक, उदय माहूरकर ने एक ट्वीट में लिखा, 'असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा जी को धन्यवाद कि उन्होंने गुवाहाटी में वीर सावरकर पर हमारी पुस्तक पर चर्चा की और सावरकर और की प्रासंगिकता को लेकर भाषण दिया। कैसे वामपंथियों ने हमारे इतिहास को विकृत किया और अपने विभाजनकारी उद्देश्यों के लिए लोगों के बीच असंतोष के बीज बोए।'