- वियतनाम को सबक को सिखाने के लिए 1979 में चीन भेजी थी छह लाख की फौज
- दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य ताकत था चीन, वियतनाम के पास थे 70 हजार सैनिक
- एक महीने में वियतनाम के बहादुर सैनिकों ने चीन की पीएलए को पस्त कर दिया
नई दिल्ली : चीन का मुख पत्र 'ग्लोबल टाइम्स' आए दिन अपने लेखों से यह जाहिर करने की कोशिश कर रहा है कि युद्ध होने पर भारत को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। वह चीन की सैन्य एवं आर्थिक ताकत की डींगे हांक रहा है। प्रोपगैंडा वीडियो जारी कर वह जताने में लगा है कि चीन की सेना पीएलए ताकतवर और भारत से बहुत बड़ी है इसलिए भारतीय फौज को उससे टकराने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। ऐसे में 'ग्लोबल टाइम्स' को 1979 के चीन-वियतनाम युद्ध के समय को याद करना चाहिए।
चीन के पास दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना थी
चीन की सेना पीएलए उस समय दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना थी। उसके मुकाबले वियतनाम बहुत छोटा देश था और उसकी सेना भी करीब 70 हजार के करीब थी लेकिन इस युद्ध में उसका क्या हाल हुआ। इसे चीन को याद करना चाहिए। वियतनाम के खिलाफ छह लाख की भारी भरकम फौज उतारने वाले चीन को वियतनाम के सैनिकों ने इस तरह से धूल चटाया कि उसे एक महीने के भीतर मैदान छोड़कर भागना पड़ा।
युद्ध केवल विशाल सेना से नहीं लड़ा जाता
बड़ी-बड़ी डींगे हांकने वाले 'ग्लोबल टाइम्स' को यह याद रखना चाहिए कि युद्ध केवल विशाल सेना से नहीं लड़ी जाता। जंग लड़ने के लिए बड़ी सेना होने के साथ-साथ एक युद्धनीति, कौशल, साहस, हौसला, दुर्गम एवं विषम भौगोलिक परिस्थितियों में लड़ाई लड़ने का अनुभव भी होना चाहिए। बात सही है कि चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है लेकिन अन्य साहस, हौसला, युद्ध नीति सहित अन्य सामरिक एवं रणनीतिक बिसात में वह भारत के सामने कहां और कितना टिकता है, इस बात का आंकलन और आत्म मंथन उसे जरूर करना चाहिए।
वियतनाम में एक महीने में हालत हुई खराब
वियतनाम के सैनिकों ने उसे अपने यहां इतना पस्त कर दिया कि उसे वहां एक महीना टिकना भी मुश्किल हो गया। वियतनाम में चीन 17 फरवरी 1979 को अपनी सेना भेजी लेकिन दुर्गति होने पर उसे अपने सैनिकों को वापस बुलाना पड़ा। यही नहीं कंबोडिया जो कि चीन के प्रभुत्व में था, वहां पर वियतनाम का अगले 10 सालों तक शासन रहा।
लचर थी चीन की सैन्य तैयारी
बताया जाता है कि इस युद्ध के लिए चीन की तैयारी इतनी लचर एवं खस्ताहाल थी कि उनकी युद्धनीति पर वियतनाम के कमांडर हैरान थे। 1962 की लड़ाई में भारत के खिलाफ जंग जीतने वाले चीन की तैयारी इतनी कमजोर होगी इस बारे में वियतनाम के अफसरों ने कल्पना नहीं की थी। छोटा सा मुल्क वियतनाम अमेरिका से 20 सालों तक लोहा लेता रहा। वियतनाम के साथ युद्ध में अमेरिका को भारी नुकसान उठाना पड़ा और उसे वापस जाना पड़ा। फ्रांस, जापान और कंबोडिया से जंग लड़ चुके वियतनाम के पास युद्ध लड़ने का काफी अनुभव था। वियतनाम में मिली शिकस्त के बाद चीन को अपनी सेना में बड़े पैमाने पर सुधार लागू करना पड़ा।
रूस के हथियारों का वियतनाम ने किया इस्तेमाल
अमेरिका से लड़ने में सोवियत रूस ने जो हथियार उसे मुहैया कराए थे उन हथियारों का इस्तेमाल उसने चीन के खिलाफ किया। यह युद्ध लड़ने का अनुभव ही था कि वियतनाम को चीन के खिलाफ सफलता मिली। 1979 के बाद चीन ने कोई युद्ध नहीं लड़ा है। दुर्गम और हिमालय की ऊंची पहाड़ियों में युद्ध लड़ने का अनुभव उसके पास नहीं है। लद्दाख एवं एलएसी पर केवल तकनीक के सहारे युद्ध नहीं लड़ा जा सकता। इसके लिए आपको वहां कठोर एवं शून्य से भी नीचे तापमान में सरहद की निगरानी एवं गश्त करनी पड़ेगी।
भारतीय सेना का लोहा दुनिया मानती है
भारतीय जवान इन हालातों के आदी हैं और 1999 के कारगिल युद्ध में अपने हौसला एवं वीरता का परिचय दे चुके हैं। इसलिए 'ग्लोबल टाइम्स' को भारत को नसीहत देने की जगह पहले अपने गिरेबां में झांकना चाहिए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सेना दोनों कह चुके हैं कि वे सीमा पर शांति चाहते हैं लेकिन जंग की परिस्थितियां बनीं तो उसके लिए भी तैयार हैं। इसलिए चीन के मुखपत्र को भारत को कमतर आंकने की गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए। दुश्मन को कैसे छकाया और उससे निपटा जाता है इसे सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयर स्ट्राइक और पूर्वी लद्दाख से समझा जा सकता है।