- 'ब्वॉयज लॉकर रूम' चैट ग्रुप पर लड़कियों के बारे में आपत्तिजनक बातें की जाती थीं
- ग्रुप पर लड़कियों के रेप समेत अन्य गैर कानूनी बातों की चर्चा होती थी
- पुलिस ने ग्रुप के एक नाबालिग लड़के को हिरासत में लिया है और जांच कर रही है
नई दिल्ली: पीठ पीछे किसी की बातें करना और बात है। इन बातों में किसी की तारीफ और बुराई हो सकती है। अक्सर लोग महफिलों या दोस्तों के बीच चर्चा में किसी की तारीफ या बुराई करते हैं। मगर जब कोई गैंगरेप की चर्चा या प्लानिंग करने लगे तब वो सिर्फ मामूली बात नहीं हो सकती। ऐसी चर्चाएं दूषित मानसिकता से जन्म लेती हैं जिन्हें काफी समय तक घिनौने माहौल का खाद-पानी दिया गया है। इसी दूषित मानसिकता का प्रतिबिंब दक्षिणी दिल्ली के स्कूलों के वो छात्र भी हैं जो इंस्टाग्राम पर एक चैट ग्रुप बनाकर न सिर्फ लड़कियों के बारे में अश्लील बातें करते थे बल्कि गैंगरेप तक की प्लानिंग कर रहे थे।
छात्रों के मन में विषैला ख्याल क्यों आया?
दिल्ली पुलिस ने जब एक नाबालिग छात्र को हिरासत में लेकर पूछताछ की तो पता चला कि ग्रुप में तकरीबन 20 लड़के थे जो इस तरह की चर्चा में शामिल थे। इन लड़कों की उम्र करीब 15 से 18 वर्ष है और उनके चैट ग्रुप का नाम 'बॉयज लॉकर रूम' था। अगर सोशल मीडिया पर ग्रुप चैट के स्क्रीनशॉट वायरल ना होते तो शायद यह लड़के अपनी चर्चा पर अमल करने से गुरेज न करते। आखिर स्कूली छात्रों के मन में यह विषैला ख्याल क्यों आया? क्या हमारा शिक्षा का तंत्र इसके लिए जिम्मेदार है? या फिर मां-बाप की बच्चों को लेकर बेवपरवाही वजह है?
तकनीक जहां सुविधाओं तक पहुंच को आसान बना रही वहीं इसके दुष्परिणाम भी अब जाहिर होने लगे हैं। छोटी उम्र के बच्चों को बहलाने के लिए मां-बाप अक्सर मोबाइल फोन दे देते हैं। उनकी नजर में यह भले ही दुलार हो लेकिन मोबाइल की लत दोनों के दरमियान दूरी बढ़ाना शुरू कर देती है। बच्चे को बढ़ती उम्र के साथ इंसानों की बजाए एक गैजेट से लगाव होने लगता है। वो उसे ही अपनी असली और सुरक्षित दुनिया समझने समझता है। फिर उसके मन से यह डर खत्म होने में ज्यादा देर नहीं लगती कि मुझे इंटरनेट पर सबकुछ कहने और चर्चा करने की आजादी है।
कैसे मैला हुआ स्कूली छात्रों का मन?
बच्चों की बढ़ती उम्र के साथ 'काम इच्छा' का उतपन्न होना स्वाभविक है। उनके मन में तरह-तरह के सवाल और ख्याल दस्तक देते हैं। ऐसे में अगर बच्चों को सही समय पर उपयुक्त जवाब न दिए जाएं तो वो राह से भटक सकते हैं। यह जिम्मेदारी मां-बाप और स्कूल की है। मां-बाप को जहां बच्चों को सही-गलत में स्पष्ट फर्क बताना होगा, वहीं शिक्षकों को सेक्स एजुकेशन के विषय को हल्के में टालने की आदत का त्याग करना होगा। साथ ही घरों में जेंडर इक्वालिटी पर भी जोर दिया जाए तो बहुत से मसले हल हो सकते हैं। रेप जैसे घिनौने ख्याल तभी जहन में आते हैं जब कोई पुरुष किसी महिला को कमजोर मानता है।
छात्रों में कानून का डर क्यों नहीं था?
चैट ग्रुप पर गैंगरेप की प्लानिंग करने वाले स्कूली छात्र इतने छोटे नहीं थे कि उन्हें पुलिस-अदालत और सजा के बारे में जानकारी नहीं थी। नागरिकों के मन में कानून का डर होना चाहिए कि अगर वो कुछ गलत करेंगे तो उन्हें सजा जरूरी मिलेगी। छात्रों को पता था कि उनकी चर्चा अपराध को अंजाम देने को लेकर थी। ऐसा न होता तो छात्र चैट के लीक होने के बाद ग्रुप को डिएक्टिवेट नहीं कर करते। वैसे, देश में बलात्कार के मामलों में सजा की दर कोई ज्यादा बेहतर नही है। ऐसे में नागरिकों के दिल में कानून का डर कहां से आएगा।
इस साल जनवरी में प्रकाशित हुई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट मुताबिक, बलात्कार के मामलों में देश में सजा की दर अभी सिर्फ 27.2 प्रतिशत है। एनसीआरबी के अनुसार, साल 2018 में बलात्कार के 1,56,327 मामलों में मुकदमे की सुनवाई हुई। इनमें से 17,313 मामलों में सुनवाई पूरी हुई और महज 4,708 मामलों में दोषियों को ही सजा मिल सकी। वहीं, 11,133 मामलों में आरोपी बरी कर किए गए और 1,472 मामलों में आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया गया। भारत में 2018 में औसतन हर रोज में 91 महिलाओं ने बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई।
डिस्क्लेमर: इस प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।