- नागरिकता संशोधन बिल पर लोकसभा में जेडीयू ने किया सरकार का समर्थन
- लोकसभा में जेडीयू के कुल 16 सांसद हैं, राज्यसभा में कुल 6 सांसद
- राज्यसभा में बिल पास कराने के लिए सरकार को चाहिए 120 सांसदों का समर्थन
नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन बिल को लोकसभा ने हरी झंडी दिखा दी है, और अब इस बिल को राज्यसभा में पेश किया जाएगा। लोकसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि जो लोग घुसपैठिये और शरणार्थी में फर्क नहीं कर पा रहे उन्हें ऐतराज है।लोकसभा में इस बिल के समर्थन में 311 मत पड़े जिसमें जेडीयू भी शामिल थी। ये बात अलग है कि पार्टी के उपाध्यक्ष और रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर सवाल उठाया। अब उनके बाद पवन वर्मा ने भी अपनी आवाज बुलंद की है।
पवन वर्मा का कहना है कि नागरिकता संशोधन बिल संविधान की मूल भावना के खिलाफ है, यह बिल एकदूसरे को बांटने का काम करेगा। यही नहीं जेडीयू का जो अपना विचार है उसमें भी यह बिल कहीं फिट नहीं बैठता है। अगर गांधी जी होते तो वो भी इस बिल का विरोध करते।यह बेहतर होगा कि पार्टी राज्यसभा में अपने समर्थन के फैसले पर विचार करे।
इससे पहले रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा कि जेडीयू द्वारा नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन करना निराशाजनक है। कैब बिल पर जेडीयू का समर्थन करना पार्टी के संविधान का भी उल्लंघन करता है, इसके साथ ही ये गांधी के विचारों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि जेडीयू सदैव से धर्म आधारित राजनीति के खिलाफ रही है लेकिन जिस तरह से इस बिल को लाया गया वैस में पार्टी को समर्थन देने से बचना चाहिये।
लोकसभा में जेडीयू के 16 सांसद हैं। जानकारों का कहना है कि अगर अंकगणित के हिसाब से आंकलन किया जाए तो जेडीयू समर्थन नहीं भी करती तो बीजेपी के लिए किसी तरह की दिक्कत नहीं होती। लोकसभा में जेडीयू का समर्थन यह बताने के लिए था कि वो कैब पर सरकार की नीति से सहमत है। असली लड़ाई राज्यसभा में जहां बीजेपी के पास बहुमत नहीं है। राज्यसभा में जेडीयू के खाते में 6 सांसद हैं और बीजेपी को बिल पारित कराने के लिए 120 सांसदों का समर्थन चाहिए। ऐसे में मोदी सरकार के लिए एक एक सांसद का समर्थन महत्वपूर्ण है।
जानकारों का कहना है कि तीन तलाक के मुद्दे पर जेडीयू के रुख को देश ने देखा। उस मामले में जेडीयू सांसदों मे संसद के दोनों सदनों में मुखालफत की लेकिन मतदान के समय गैरहाजिर रहकर सरकार को टैक्टिकल समर्थन दिया। ये बात अलग है कि उस समय भी पार्टी के अंदर सहमति नहीं थी। लेकिन नीतीश कुमार अपनी मंशा साफ कर चुके थे और दूसरे नेताओं को उनके फैसले को स्वीकार करना पड़ा। लेकिन इस मामले में जिस तरह से दो दिग्गज नेताओं ने ट्वीट के जरिए नाराजगी और सलाह दी वैसे में नीतीश कुमार अपने फैसले पर पुनर्विचार करें तो आश्चर्य करने की बात न होगी।