- भागीदारी संकल्प मोर्चा के ओम प्रकाश राजभर और भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद सपा से गठबंधन करना चाहते हैं।
- पिछले सात-आठ महीनों में बहुजन समाज पार्टी के कई नेताओं ने समाजवादी पार्टी का हाथ थामा है।
- अखिलेश यादव ने 2017 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। कांग्रेस ने उस वक्त 105 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे पार्टियों की रणनीति का खुलासा होता जा रहा है। पिछले कई महीनों से बसपा के नेताओं को समाजवादी पार्टी में शामिल कर रहे अखिलेश यादव ने लगता है, अपनी रणनीति में बदलाव कर दिया है। अभी कुछ दिन पहले तक छोटे दलों के साथ गठबंधन की बात कर रहे अखिलेश यादव, अब नई रणनीति पर काम कर रहे हैं ? इसके तहत वह ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की कोशिश में हैं।
ज्यादा सीटें देने के पक्ष में नहीं
सूत्रों के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भीमा आर्मी चीफ और आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद के साथ अखिलेश यादव की गठबंधन और सीटों के बंटवारे को लेकर कई दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन लगता है अब अखिलेश यादव अपने हिस्से की सीटों में से चंद्रशेखर को चुनाव लड़ने के लिए सीटें नहीं देना चाहते हैं। सूत्रों के अनुसार पार्टी ने चंद्रशेखर को साफ कर दिया है कि वह गठबंधन का हिस्सा तो रह सकते हैं। लेकिन सीटें राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के साथ साझा करनी पड़ेगी। पार्टी अपने हिस्से में से सीटें बांटना नहीं चाहती है। हालांकि इस प्रस्ताव पर आरएलडी क्या प्रतिक्रिया देती है। इसे देखना बाकी है। फिलहाल समाजवादी पार्टी का आरएलडी और महान दल के साथ गठबंधन है।
जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय के प्रोफेसर विवेक कुमार भीमा आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद की संभावनाओं पर कहते हैं "देखिए भीड़ा जुटाना अलग है और चुनाव लड़ना अलग बात होती है। अभी उन्हें बहुत कुछ साबित करना है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी उनका संगठन भी बेहद कमजोर है। पंचायत चुनावों में भी उनकी पार्टी का पार्षद भाजपा में शामिल हो चुका है।"
ओम प्रकाश राजभर से भी दूरी बनाई
इसी तरह सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर कई बार सार्वजनिक रुप से अखिलेश के साथ गठबंधन की अपील कर चुके हैं। वह यहां तक कह चुके हैं कि अगर समाजवादी पार्टी छोटे दलों के साथ गठबंधन कर लें तो चुनाव परिणाम पूरी तरह से बदल जाएंगे। हालांकि अभी तक अखिलेश ने उनसे दूरी बनाई हुई है। फिलहाल ओम प्रकाश राजभर ने भागीदारी संकल्प मोर्चे बना लिया है। और उसमें छोटे-छोटे 9 दल शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार ओम प्रकाश राजभर जिस तरह से भाजपा के साथ पर्दे के पीछे गठबंधन की कवायद कर रहे हैं, इसे देखते हुए समाजवादी पार्टी उन पर ज्यादा भरोसा नहीं कर रही है।
आप भी अकेले लड़ेगी चुनाव
इस बार उत्तर प्रदेश के चुनावों में आम आदमी पार्टी भी हाथ आजमाने जा रही है। शुरूआत में पार्टी गठबंधन करने की कोशिशें भी कर रही थी। इसके तहत आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह की अखिलेश यादव से लेकर ओम प्रकाश राजभर से कई बार मुलाकातें भी हुईं थी। लेकिन अब पार्टी ने प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।
पिछले 8 महीने में कई नेताओं ने सपा का थामा हाथ
इस समय भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने में सबसे बड़ी उम्मीद समाजवादी पार्टी ही है। ऐसे में पिछले कुछ समय से कई नेताओं ने सपा का हाथ थामा है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान बहुजन समाज पार्टी को हुआ है। 28 अगस्त को बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के बड़े भाई सिब्कातुल्लाह अंसारी अपने समर्थकों के साथ सपा में शामिल हो गए। उनके साथ बसपा नेता अंबिका चौधरी भी दोबारा सपा में शामिल हो गए हैं।बीते जुलाई में दो बार विधायक रहे डॉ. धर्मपाल सिंह ने सपा में वापसी कर ली है। वह 2017 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। वहीं बसपा में एक समय वरिष्ठ नेताओं में शुमार कुंवरचंद वकील भी सपा में शामिल हो गए। इसी तरह जनवरी में बसपा नेता सुनीता वर्मा, पूर्व मंत्री योगेश वर्मा सहित कई नेता बसपा छोड़ समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। इसके पहले जनवरी 2021 से ही कई सारे नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ा था।
चाचा शिवपाल चाह रहे हैं सपा का साथ
2017 में अखिलेश यादव से नाराज होकर उनके चाचा शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया बना ली थी। लेकिन अब शिवपाल यादव भी समाजवादी पार्टी में विलय या गठबंधन चाह रहे हैं और इसके वह संकेत भी दे चुके हैं। लेकिन अभी अखिलेश यादव उसके लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि अभी इसका समय नहीं आया है। समय आने पर समझौता करेंगे। साफ है अखिलेश फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। अखिलेश की रणनीती पर विवेक कुमार कहते हैं "देखिए 2012 में जब वह मुख्य मंत्री बने थे, तो उस समय उनके पिता मुलायम सिंह और चाचा शिवपाल यादव साथ थे। साल 2017 में स्थिति बदल गई और उन्होंने कांग्रेस के साथ न केवल गठबंधन किया बल्कि उसे 100 सीटें भी दी थी। नतीजा क्या हुआ, यह सबको पता है।" पिछले अनुभवों को देखते हुए लगता है कि अखिलेश इस बाद बहुत ज्यादा सीटें देने के पक्ष में नहीं है। इसीलिए वह कोई जल्दीबाजी में नहीं दिख रहे हैं।