- ममता बनर्जी 2011 में पश्चिम बंगाल की सत्ता में आईं
- 2016 में ममता ने फिर से सत्ता हासिल की
- TMC ने 2011 में वामपंथी सरकार को 34 साल बाद सत्ता से बाहर किया
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में जल्द ही होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र में हैं। इस बार उन्हें बीजेपी से कड़ी टक्कर मिल रही है। भाजपा के बड़े से बड़े नेता उन पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। वहीं ममता बनर्जी भी आक्रमक तरीके से अपने ऊपर हो रहे हमलों को झेल रही हैं और पलटवार कर रही हैं। ममता बनर्जी पिछले 10 सालों से राज्य की मुख्यमंत्री हैं, लेकिन इस बार उन्हें बीजेपी से कड़ी चुनौती मिल रही है।
ममता बनर्जी 2011 में लेफ्ट सरकार के 34 साल के शासन को खत्म कर पहली बार राज्य की मुख्यमंत्री बनी थीं। 2016 में उन्होंने एक बार फिर से सत्ता हासिल की। ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर 1998 में तृणमूल कांग्रेस का गठन किया था। टीएमसी के गठन के 13 साल बाद वो पश्चिम बंगाल में सत्ता काबिज करने में सफल रहीं।
लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल की
2011 से पहले टीएमसी ने 2 बार विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन वो सत्ता में नहीं आ पाई। 2001 में पार्टी 294 में से 226 सीटों पर लड़ी और सिर्फ 60 पर जीत हासिल कर सकी। इसके बाद 2006 में 257 सीटों पर लड़ने के बावजूद पार्टी को सिर्फ 30 ही सीटें मिलीं। लेकिन 2011 में ममता की पार्टी सिर्फ 226 सीटों पर चुनाव लड़ी और 184 पर जीत हासिल की। टीएमसी सत्ता में आई और ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनीं। 2016 विधानसभा चुनाव में TMC 293 सीटों पर चुनाव लड़ी और 211 पर जीत हासिल की।
नंदीग्राम-सिंगूर आंदोलन से सत्ता का रास्ता
ममता बनर्जी को सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन से काफी फायदा हुआ और वो राज्य की सत्ता तक पहुंची। उन्होंने बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार की औद्योगिक विकास नीति के नाम पर स्थानीय किसानों के खिलाफ जबरदस्त जमीन अधिग्रहण और अत्याचार का विरोध किया। टाटा मोटर्स सिंगूर में प्लांट बनाना चाहती थी और इसके लिए भूमि अधिग्रहण भी किया गया था, लेकिन ममता ने इसके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया। इसके चलते टाटा मोटर्स ने अपना फैसला वापस ले लिया। नंदीग्राम हिंसा 2007 में हुई थी। पश्चिम बंगाल की सरकार ने सलीम ग्रूप को 'स्पेशल इकनॉमिक जोन' नीति के तहत नंदीग्राम में एक केमिकल हब की स्थापना करने की अनुमति प्रदान करने का फैसला किया। ग्रामीणों ने इस फैसले का प्रतिरोध किया जिसके परिणामस्वरूप पुलिस के साथ उनकी मुठभेड़ हुई जिसमें 14 ग्रामीण मारे गए और पुलिस पर बर्बरता का आरोप लगा।