- पूरे विश्व में देखने को मिलती है प्रभु राम की झलक
- थाइलैंड में है अयोध्या जैसी नगर
- अमेरिका में भी प्रभु राम की भक्ति
Ram Mandir Bhoomi Pujan: अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर की आधारशिला रखी जा चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मंदिर का भूमि पूजन किया और इसी के साथ विश्वभर में मौजूद करोड़ों रामभक्तों का सपना सत्य में बदल गया। प्रभु राम के आदर्शों के अनुरूप नए भारत के निर्माण के एक नए युग का आरम्भ हो रहा है। राम मंदिर निर्माण से अयोध्या में धर्म और विकास के समन्वय से हर्ष की सरिता और समृद्धि की बयार बहेगी। यह हर्ष, उल्लास, भजन-कीर्तन, सुख-समृद्धि और संस्कृति का ऐसा पावन दिन है आज जो इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा। लाखों राम भक्तों का बलिदान आज सफल हो रहा है और करोड़ों रामभक्तों की आस्था प्रबल हो रही है।
श्रीराम की यात्रा का अगर प्राचीन सांस्कृतिक विश्व मानचित्र देखेंगे तो हैरान रह जाएंगे क्योंकि उन्हें निशान विश्व भर मिलते हैं। ऐसे ही नहीं कहा जाता है कि प्रभु श्रीराम हर कण में बसे हुए हैं। श्रीराम की विश्व यात्रा भारत से लेकर मॉरिशस, वेस्टइंडीज, अमेरिका, यूरोप, रूस, चीन, जापान, ईरान, ईराक, सीरिया समेत नेपाल, लाओस, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, मलेशिया और श्रीलंका तक थी। इन देशों में ऐसे तमाम प्रमाण मौजूद हैं जिससे पता चलता है कि भगवान राम के चरण यहां पड़े होंगे।
बैंकॉक में रामायण चित्रों की विश्व में सबसे लंबी श्रंखला है। वहीं राजमहल के अंदर भगवान बुद्ध की मूर्ति व अंदर व बाहरी दीवारों पर पूरी रामायण है। दीवारों पर ऐसे रामायण का अंकन केरल के कोची में मट्टनचेरी चर्च व कंबोडिया के राजमहल में मिलते हैं। थाईलैंड के लबबुरी में हनुमान जी संजीवनी बूटी हेतु गिर पर्वत उठाते हुए दिख जाएंगे। वहां हनुमान जी की विभिन्न मूर्तियां देखने को मिलती हैं। थाईलैंड कुछ इस कदर राममय है कि वहां की सड़कों से लेकर पुलों के नाम तक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के नाम पर रखे गए हैं।
थाईलैंड में अयोध्या जैसा दृश्य
थाईलैंड में प्रभु श्रीराम के जीवन पर एंव रामायण पर आधारित चित्रकला की कार्यशला भी आयोजित की जाती है, जहां पर आकर लोग उनके बारे में जानकारी हासिल करते हैं। इससे ज्यादा हमारे लिए गौरव का विषय और क्या हो सकता है। यहां के रॉयल पैलेस व भीतरी दीवारों पर संपूर्ण रामकियन रामायण का अंकन है। यहां संपूर्ण महल में विश्व की सबसे लंबी रामायण पेंटिंग भी है। कंबोडिया में लिंटेल रामायण के एक प्रकरण का प्रतिनिधित्व करते हैं। जहां पर बालि और सुग्रीव की की मूर्तियों को देखा जा सकता है। कंबोडिया में बाल्मीकि और रामायण से संबंधित विश्व के सबसे प्राचीन स्थलों में से एक है वैंटन छमार।
थाईलैंड की समा पर लगे इस स्थान की विरासत देकर गर्व महसूस होता है। 14वीं शताब्दी में जब थाईलैंड पर आक्रमण हुआ तो बहुत लोग भागकर बैंकॉक और लाओस आए गए। लाओस आए लोगों ने बौद्ध संस्कृति के साथ ही राम मंदिर भी बनाएं। यहां आज भी प्रतिदिन रामयण का मंचन किया जाता है। यहां ताड़ पत्र पर रामायण मिलती है। एक कम्यूनिस्ट देश होने के बावजूद लाओस का रॉयल पैलेस म्यूजियम वह स्थान है जहां पिछले 22 वर्षों से लगातार प्रतिदिन रामलीला का मंचन किया जा रहा है।
अमेरिका में भी राम का गुणगान
अमेरिका के कैलीफोर्निया प्रांत में स्कूलों में रामलीला खेलना बेहद आम बात है। खास बात यह है कि वहां रामलीला पर शोध करते हुए हर पक्ष पर सुधार कर भारत की परंपरा व अमेरिका की आधुनिकता का सामंजस्य करते हुए निरंतर अभ्यास किया जा रहा है। बेल्जियम निवासी फादर कामिल बुल्के भारत आने के बाद राममय हो गए। उन्होंने द्वारा लिखी गइर रामकथा आज तक का सर्वश्रेष्ठ शोध कार्य माना जाता है। फेडरिक सालमन ग्राउस द्वारा रामचरितमानस का अंग्रेजी में पहला अनुवाद किया गया था। यह अनुवाद 700 पृष्ठ का है।
कैलिफोर्निया के माउंअ मेडोना स्कूल में पिछले 40 वर्षों से जून के प्रथम सप्ताह में टिकट लगाकर रामलीलाएं की जाती हैं। इसमें लगभग 250 बच्चे तीन महीने तक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। यह हमारे लिए सबसे बड़ी सीख है। माना जाता हे कि मिस्र में 1500 वर्ष पूर्व राजाओं के नाम तथा कहानियां प्रभु श्रीराम की तरह ही हैं। राम मेन्नादी मिखाइलोविच पिचिनिकोय, रामलीला का प्रशिक्षण मॉस्कों में देते थे। इन प्रयासों के चलते उन्हें पद्म श्री जैसे पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।
मध्य अमेरिका में हनुमान जी की प्रतिमा
मध्य अमेरिका के देश होन्डुरास के घने जंगलों में हनुमान जी की प्रतिमा व विशाल शहर घने जंगलों में मिला है। इस खेज को किए जाने से मध्य अमेरिका महाद्वीप के सास्कृतिक संबंधों को नई दिशा मिलेगी। रूस और भारत का आत्मीय और भावुक रिश्ता तो रहा ही है बल्कि उसके साथ हमारा सांस्कृतिक रिश्ता भी रहा है। वहां के लोगों द्वारा राम, हनुमान और दुर्गा जी की लघु व पारंपरिक प्रतिमाएं आपको देखने को मिल जाएंगी। यूरोप के संपन्न देशों में से एक इटली में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व रामायण से मिलते जुलते चित्र दीवारों पर प्राप्त हुए हैं।