- हाथरस केस में अब तक एसपी समेत सात पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई
- योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ विपक्ष के साथ साथ अपने भी साध रहे हैं निशाना
- 14 सितंबर को पीड़िता के साथ गैंगरेप की हुई थी वारदात, 29 सितंबर को सफदरजंग अस्पताल में हुआ था निधन
14 सितंबर के दिन राजधानी लखनऊ में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ अधिकारियों को निर्देश दे रहे थे कि प्रदेश में बेटियों की सुरक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। लेकिन ठीक उसी दिन लखनऊ से करीब 500 किमी दूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में कुछ दरिंदे न सिर्फ एक शरीर को कुचल रहे थे बल्कि आत्मा पर भी चोट कर रहे थे। वो पीड़ित ना सिर्फ शारीरिक तौर पर टूटी बल्कि मानसिक आघात कुछ इस कदर हुआ कि वो कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी। परिवार बेचारा हैरान परेशान और लाचार था यही नहीं व्यवस्था की चोट ने वो घाव दिया जिसके असर से उबर पाना आसान नहीं होगा। हाथरस की वो बिटिया अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उसकी चीत्कार एक सरकार के लिए भारी पड़ती नजर आ रही है और उस सरकार का नाम है योगी सरकार।
29 सितंबर की काली रात को जब व्यवस्था की जल गई चिता
कानून की पाठ और व्यवस्था के चादर में पीड़ित लड़की का परिवार इंसाफ की गुहार लगा रहा है। उस घटना की तह तक पहुंचने के लिए सच वाली कमेटी यानी एसआईटी जांच कर रही है। लेकिन उस कमेटी को नौकरशाही वाले आवरण से ढंक कर रखा गया है जिसके खिलाफ माननीय जनप्रतिनिधियों के साथ साथ चौथा स्तंभ भी अलख जगा रहा है। योगी सरकार का प्रशासन जिस तरह से इस मामले को इंसाफ का तराजू तक ले जाने की जुगत में है,उस कवायद पर न सिर्फ विपक्ष बल्कि अपने भी संदेह कर रहे हैं।
मृत शरीर का बोझ कहां होता है हल्का
29 सितंबर की रात को जब पीड़िता के शव को जलाया जा रहा था तो उस समय पौ फटने में महज साढ़े तीन घंटे बचे थे। बेटी की अंतिम क्रिया कर्म से पहले उसकी मां अपनी बेटी का अंतिम दर्शन करना चाहती थी। लेकिन हाथरस जिला प्रशासन को अपनी करतूतों पर पर्दा डालना था, सरकार को विरोध से बचाना था। जिला प्रशासन ने अपने फर्ज को अंजाम दिया। लेकिन वो मृत शरीर अब व्यवस्था पर भारी पड़ चुकी है।
हाथरस की तपिश लखनऊ तक
29 सितंबर को रात में हाथरस की बूलगढ़ी गांव के आखिरी छोर पर एक चिता चल रही थी जिसकी तपिश अब योगी सरकार महसूस कर रही है अगर ऐसा न होता तो वो खुद ट्वीट ना करते। जिस समय पीड़िता की चिता को आग के हवाले किया गया उससे ठीक पहले उसकी मां अधिकारियों से हल्दी लगाने की गुहार लगा रही थी। वो कह रही थी अपनी बेटी को सुहागन वाली हल्दी तो नहीं लगा सकी, कम से कम हिंदू धर्म में जो क्रिया क्रम की विधि है उसे पूरी करने दिया जाए। लेकिन सरकार की रसूख के आगे किसी ती हैसियत या संवेदना का मोल कहां होता है। वो बेटी अनंत में विलीन हो चुकी है, लेकिन सियासी भंवर में योगी सरकार फंसती नजर आ रही है।
अपनों ने भी उठाए सवाल
बेशक जमीन पर हाथरस जिला प्रशासन ने फैसला लिया हो लेकिन उसकी तपीश लखनऊ को भी महसूस हो रही है। विपक्ष के निशाने पर योगी सरकार है तो अपने भी उनसे सवाल करने के साथ सलाह भी दे रहे हैं, उमा भारती उनमें से एक हैं जिन्होंने एम्स ऋषिकेष से अपनी भावना का इजहार कुछ यूं किया।
- योगी आदित्यनाथ ने एक खास महिला उमा भारती ने अपील की एक के बाद सात ट्वीट के जरिए अपनी भावना का इजहार किया तो योगी आदित्यनाथ को छोटे भाई की तरह नसीहत भी दी। उमा भारती के कहने का क्या मतलब है उसे समझने से पहले उन्होंने किस तरह से अपनी भावना का उद्गार किया उसे पढ़ना जरूरी है।
- मै कोरोना वार्ड में बहुत बैचेन हूं । अगर मैं कोरोना पॉज़िटिव ना होती तो मैं भी उस गाव मै उस परिवार के साथ बैठी होती । AIIMS ऋषिकेश से छुट्टी होने पर मै हाथरस में उस पीड़ित परिवार से ज़रूर मिलूँगी ।
- आप एक बहुत ही साफ़ सुधरी छवि के शासक है । मेरा आपसे अनुरोध है कि आप मीडियाकर्मियों को एवं अन्य राजनीतिक दलो के लोगों को पीड़ित परिवार से मिलने दीजिये ।
- हमने अभी राम मंदिर का शिलान्यास किया है तथा आगे देश में रामराज्य लाने क़ा दावा किया है किन्तु इस घटना पर पुलिस की संदेहपूर्ण कार्यवाही से आपकी, UPGovt की तथा बीजेपी की की छवि पे आँच आयी है ।
- मेरी जानकारी में ऐसा कोई नियम नही है की एसआइटी जाँच में परिवार किसीसे मिल भी ना पाये । इससे तो एसाईटी की जाँच ही संदेह के दायरे में आ जायेगी ।
- वह एक दलित परिवार की बिटिया थी । बड़ी जल्दबाज़ी में पुलिस ने उसकी अंत्येष्टि की और अब परिवार एवं गाव की पुलिस के द्वारा घेराबंदी कर दी गयी है ।
- मैंने हाथरस की घटना के बारे में देखा । पहले तो मुझे लगा की मै ना बोलूँ क्यूँकि आप इस सम्बंध में ठीक ही कार्यवाही कर रहे होंगे । किन्तु जिस प्रकार से पुलिस ने गाव की एवं पीड़ित परिवार की घेराबंदी की है उसके कितने भी तर्क हो लेकिन इससे विभिन्न आशंकाये जन्मती है ।
कई सवाल लेकिन जवाब नहीं
सवाल यह है कि हाथरस जिला प्रशासन विपक्ष के साथ साथ चौथे खंभे यानी मीडिया को पीड़िता के गांव जाने की इजाजत क्यों नहीं दे रहा है। अगर सबकुछ पाक साफ है तो डर किस बात का। मौजूदा समय में जिस तरह से यूपी सरकार जमीन पर नजर आ रही है उसमें 2012 को वो अमावस वाली रात और सर्द भरे दिन याद आते हैं कि जब निर्भया के लिए जनता इंडिया गेट पर उतर आई। दिल्ली की तत्कालीन कांग्रेस सरकार को लगता था कि भावनाओं के ज्वार पर लाठी की मार भारी पड़ेगी। लेकिन ऐसा हो न सका और शीला दीक्षित की सरकार के साथ साथ तत्कालीन यूपीए सरकार को झुकना पड़ा। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या यूपी भी 8 साल बाद उस इतिहास को दोहराएगा।