- कोरोना वायरस पर चीन की भूमिका सवालों के घेरे में
- अमेरिका सहित कई देश चीन पर लगा रहे हैं आरोप
- जर्मनी ने चीन को भेजा है 130 बिलियन पाउंड हर्जाने का बिल
चीन के वुहान शहर से निकले नोवेल कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। पूरी दुनिया में त्राहि-त्राहि मची हुई है। लाखों मौतों के साथ इस कोविड –19 ने कई आर्थिक महाशक्तियों की कमर तोड़ दी है। अमेरिका जैसे देश में कोरोना महामारी की वजह से करीब दो करोड़ लोगों ने बेरोज़गारी भत्ते के लिये ट्रंप सरकार से गुहार लगाई है। अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और भारत समेत कई देशों में कृषि, विनिर्माण, सेवा उद्योग, यातायात, पर्यटन, छोटे और मंझोले उद्योग समेत भारी उद्योगों पर बुरा असर पड़ा है।
जर्मनी ने भेजा हर्जाने का बिल
जर्मनी के सबसे बड़े अखबार ‘बिल्ड’ की मानें तो उसने कोरोना वायरस के चलते अपने देश में हुए नुकसान के लिये पूरी तरह चीन को दोषी ठहराया है और चीन पर 130 बिलियन पाउंड के हर्जाने का दावा ठोका है, जर्मनी ने बाकायदा इसका इन्वॉयस चीन को भेजा है जिसमें लिखा गया है कि चीन के कोरोना वायरस से जर्मनी के पर्यटन उद्योग को 27 बिलियन यूरो का नुकसान हुआ है, जर्मन फिल्म उद्योग को 7.2 बिलियन यूरो का नुकसान हुआ है, जर्मनी की राष्ट्रीय एयरलाइंस लुफ्तांसा एयर को हर घंटे के हिसाब से 10 लाख यूरो का नुकसान हुआ है, और छोटे उद्योगों को 50 बिलियन यूरो का नुकसान हुआ है, इस इन्वॉयस को पाने के बाद चीन बिलबिला उठा है और उसने जर्मनी पर नस्लवादी होने तक का आरोप जड़ दिया है।
चीन को सबक सिखाने के मूड में ट्रंप
दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी चीन को सबक सिखाने के मूड में दिख रहे हैं। उन्होंने चीन को चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि अगर चीन की तरफ से की गई ये एक लापरवाही या जानबूझकर की गई हरकत है तो चीन को इसका अंजाम भुगतना होगा। अगर चीन ने समय रहते इस वायरस के संक्रमण को रोका होता तो पूरी दुनिया में इतना हाहाकार नहीं मचता। आज पूरा विश्व चीन की वजह से भुगत कर रहा है। ट्रंप ने चीन पर सच्चाई को छिपाने का भी आरोप लगाया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी उठे सवाल
वहीं अब विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी कई देश शक करने लगे हैं, इन देशों का मानना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस के 93 देशों में फैलने के बाद भी उसे वैश्विक महामारी घोषित नहीं किया जिसकी वजह से पूरी दुनिया को इसका नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसी सप्ताह वुहान में मृतकों की संख्या का एक नया आंकड़ा पेश किया गया है जिसमें मरने वालों की तादाद में 50 फीसदी की वृद्धि दिखाई गई है। संगठन के महासचिव अधनोम घेब्रेयुसस पर चीन के पक्ष में रहने के आरोप भी लग रहे हैं, घेब्रेयुसस पर इथियोपिया में पहले भी कुछ महामारियों को 'कवर अप' करने के आरोप लगे हैं।
चीन के खिलाफ अमेरिका सहित कई देश लामबंद
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप चीन में अपनी एक विशेषज्ञों की टीम भेजने की बात भी कह चुके हैं। वहीं इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया, फ्रांस, समेत कई देशों में चीन के खिलाफ रोष फैलता जा रहा है और ये देश कोरोना वायरस संकट के खत्म होने के बाद चीन से अपने व्यापार को कम करने या बंद करने पर भी विचार कर रहे हैं। हाल ही में हमने देखा कि अमेरिका ने चीन से फेस मास्क न मंगाकर अपने ही देश में इसे तैयार करने की मुहिम शुरू की, वहीं अमेरिका की बड़ी कार निर्माता कंपनियां फोर्ड और जनरल मोटर्स वेंटिलेटर तैयार कर रही हैं। चीन के खिलाफ दुनिया के रुख का असर अब दिखने भी लगा है, जापान ने अपनी कई कंपनियों को चीन में बंद करने का मन बना लिया है, वहीं दक्षिण कोरिया ने भी ऐसा ही करने की घोषणा की है।
अफ्रीका महाद्वीप में चीन के खिलाफ लोगों में भारी गुस्सा
अभी पिछले सप्ताह दक्षिणी शहर क्वानचौ ( पुराना नाम कैंटन) में एक अफ्रीकी काले मरीज के अस्पताल में चीनी नर्स पर हमले के बाद पूरे चीन में लोगों का गुस्सा अफ्रीकी समुदाय पर टूट पड़ा। क्वानचौ शहर में उन्हें उनके घरों से जबरदस्ती बाहर निकालकर क्वारेनटाइन में भेजा गया तो कुछ लोगों को उनके घरों में कैद कर लिया गया। एक अमेरिकी बर्गर रेस्तरां के बाहर एक नोटिस चस्पा कर ये लिख दिया कि उनके रेस्टोरेंट में काले लोगों का आना मना है, इस खबर से न सिर्फ चीन में रहने वाला अफ्रीकी समुदाय आहत है बल्कि पूरे अफ्रीका महाद्वीप में चीन के खिलाफ लोगों में भारी गुस्सा है। दुनिया भर की मीडिया ने भी जब चीन में अफ्रीकी समुदाय के साथ हो रहे इस भेदभाव को लोगों के सामने लाना शुरू किया तब चीन को बचाव की मुद्रा में आना पड़ा क्योंकि अफ्रीका में चीन के बड़े फायदे हैं। चीन को डर है कि कहीं अफ्रीका से होने वाले लाभ से वह वंचित न रह जाए क्योंकि बीजिंग जहां एक तरफ गाम्बिया से रेड वुड (लाल लकड़ी) के जंगलों को कटवाकर चीन मंगाता है जिसकी फर्नीचर के मार्केट में भारी मांग है तो दूसरी तरफ बॉक्साइट, जिप्सम, मैंगनीज, जस्ता समेत कई मिनरलों को चीन अपने देश में लाकर व्यापार से भारी मुनाफा कमाता है।
चीन में वैश्विक राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर एक शोधार्थी के बयान के अनुसार अमेरिका, सऊदी अरब और रूस मिलकर इस बात पर फैसला करने जा रहे हैं कि चीन को तेल की सप्लाई रोकी जाए। अगर ये तीनों देश इस बात पर राजी हो गए तो चीन में उसके वाहनों के लिये तेल का भारी संकट पैदा हो जाएगा। अगर ये तीनों देश ऐसा करने का फैसला कर लेते हैं तो चीन के लिए भारी मुसीबत हो सकती है। लेकिन एक बात साफ है कि कोरोना वायरस महामारी को लेकर चीन की चुप्पी और बार बार बदलते बयान से यह साफ है कि वह अब भी बहुत कुछ छिपा रहा है। कोरोना पर चीन ने दुनिया को गुमराह कर मानव सभ्यता पर संकट ला खड़ा किया है। चीन अपनी हेकड़ियों और बदनीयती के लिए जाना जाता है। दुनिया के ताकतवर देश अगर लामबंद हो गए तो यकीनन आने वाले समय में चीन के लिये मुश्किल की घड़ी शुरू होने वाली है।