नई दिल्ली: जहां जम्मू-कश्मीर (j&K) में सुरक्षा बल आतंकवादियों का सफाया कर रहे है तो दूसरी तरफ सरकार उन संगठनों पर नकेल कस रही है जो दहशतगर्दों को सपोर्ट करते हैं, सरकार जल्दी ही हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (Hurriyat Conference) पर वैन लगा सकती है, हालांकि इसका फैसला नहीं हुआ है। बताया जा रहा है कि अलगाववादी आंदोलन को चला रहे अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों धड़ों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
हुर्रियत के दोनों धड़ों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धारा 3 (1) के तहत प्रतिबंध लगने की संभावना जताई जा रही है।
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर में सक्रिय चरमपंथी संगठनों का प्रतिनिधित्व करती है
गौर हो कि अलगाववादी गठबंधन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना का मक़सद राजनीतिक जरिए से कश्मीर के अलगाव के लक्ष्य को हासिल करना है। इसकी स्थापना 9 मार्च 1993 को की गई थी। भारतीय अधिकारियों का मानना है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर में सक्रिय चरमपंथी संगठनों का प्रतिनिधित्व करती है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस मुख्यत: जम्मू-कश्मीर में चरमपंथी संगठनों से संघर्ष कर रही भारतीय सेना की भूमिका पर सवाल उठाने के अलावा मानवाधिकार की बात करती है।
भारतीय सेना की कार्रवाई को सरकारी आतंकवाद का नाम देती है
भारतीय सेना की कार्रवाई को सरकारी आतंकवाद का नाम देती है और कश्मीर पर भारत के शासन के ख़िलाफ़ हड़ताल और प्रदर्शन करती है। 15 अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के समारोहों का बहिष्कार भी करती आई है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ख़ुद को कश्मीरी जनता का असली प्रतिनिधि बताती है।