- मॉस्को में भारत और चीन के विदेश मंत्री एस जयशंकर और वांग यी में करीब 2.30 घंटे चली बातचीत
- लद्दाख के पूर्वी इलाके भारत और चीन के बीच जबरदस्त तनाव
- एससीओ से इतर मॉस्को में ही दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच हो चुकी है बातचीत
मॉस्को। भारत- चीन तनाव के बीच दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच द्विपक्षीय बातचीत खत्म हो चुकी है। यह बातचीत करीब ढाई घंटे तक चली। लद्दाख के पूर्वी सेक्टर में जिस तरह का माहौल बना हुआ है उसमें इस बातचीत की अहम भूमिका है। दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने के लिए कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर प्रयास पहले से ही जारी हैं। तनाव को कम करने के लिए एक और अहम कदम तब उठा जब चीनी रक्षा मंत्री वेई फेंघे के आग्रह पर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह वार्ता के मेज पर मॉस्को में ही बैठे थे। उस बैठक में इस बात पर बल दिया गया कि तनाव को खत्म करने के लिए आगे आना होगा। लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट किया था कि भारत किसी भी देश के एक इंच जमीन का भूखा नहीं है। लेकिन संप्रभुता पर किसी तरह की चोट को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
रूस को भारत और चीन का शुक्रिया
भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने रूस को इस बात के लिए शुक्रिया अदा किया कि वो आरआईसी की बैठक को पिछले एक साल से आयोजित कर रहा है। आधिकारिक तौर पर आरआईसी चेयरमैनशिप को विदेश मंत्री एस जयशंकर को दिया। तीनों देशों रूस, भारत और चीन ने साइंटिफिक और औद्योगिक संबंधों को और आगे ले जाएंगे। इसके साथ ही कोविड के प्रभाव को कम करने के लिए एक दूसरे का सहयोग करेंगे।
दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों में हुई थी बातचीत
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने चीनी समकक्ष वेई फेंघे से मॉस्को में दो घंटे से ज्यादा देर तक बातचीत हुई। चीनी रक्षा मंत्री ने एक बार फिर अपनी सेना की डींग हांकी और कहा कि चीन की सेना किसी भी मुकाबले का सामना करने को तैयार है। लेकिन राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि चीन जिम्मेदार देश जैसा व्यवहार करेगा। लद्दाख में एलएसी पर तैनात अपनी सेना को चीन पूरी तरह से वापस करने के लिए कदम उठाएगा। चीन को कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे दोनों देश के रिश्ते और बिगड़ें।
ग्लोबल टाइम्स का क्या है कहना
विदेश मंत्रियों की मुलाकात पर चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि अगर चीन और भारत के विदेश मंत्रियों की बैठक से सकारात्मक नतीजे नहीं निकलते हैं, या दोनों पक्ष समझौते पर अमल नहीं करते हैं तो यह एक खतरनाक संकेत हो सकता है। इसका अर्थ यह होगा कि चीन और भारत में शांति से समाधान निकलने की संभावना कम है।