- परोपकारी को कभी विपत्तियों का सामना नहीं करना पड़ता
- पतिव्रता पत्नी, सदगुणी पुत्र-पौत्र और धन बनाते घर को स्वर्ग
- धर्म-कर्म-नैतिक गुण व आचरण मनुष्य को बनाता है पशु से श्रेष्ठ
Chanakya Niti in Hindi: आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में जीवन जीने की कला के बारे में विस्तार से बताया है। आचार्य ने अपनी नीतियों व श्लोक के माध्यम से जीवन से जुड़े हर एक पहलू का जिक्र करते हुए परेशानियों को दूर करने के कई उपाय भी बताए हैं। आचार्य कहते हैं कि हर मनुष्य के अंदर गुण और अवगुण होता है। हालांकि कुछ ऐसे गुण होते हैं, जो मनुष्य और पशु के बीच अंतर करते हैं। श्लोक के माध्यम से चाणक्य बताते हैं मनुष्य के कुछ ऐसे गुण व इच्छाएं होती हैं अगर वे पूरी हो जाएं तो धरती का जीवन ही उनके लिए स्वर्ग बन जाता है, वहीं इन इच्छाओं के न पूरी होने वालों के लिए यह धरती नर्क के समान होती है।
परोपकरणं येषां जागर्ति हृद्ये सताम् |
नश्यन्ति विपदस्तेषां संपदः स्यु पदे पदे ||
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हर इंसान में परोपकार की भावना होनी चाहिए। क्योंकि परोपकार में ही इंसानियत निहित होती है। जिनका हृदय परोपकार से भरा हुआ होता है, भगवान उसका हमेशा साथ देते हैं। ऐसे लोगों को कभी विपत्तियों का सामना नहीं करना पड़ता। उनके मार्ग में आने वाली समस्त बाधाएं अपने आप नष्ट हो जाती हैं। ऐसे लोग कदम-कदम पर सफलता प्राप्त करते हैं। परोपकार से युक्त व्यक्ति दु:ख रहित होकर जीवन व्यतीत करता है।
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यदि रामा यदि च रमा अहितनयो विनयगुणोपेतः।
यदि तनये तनयोत्पतिः सुखमिन्द्रे किमाधिक्यम् ।।
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पतिव्रता पत्नी, सदगुणों से युक्त पुत्र-पौत्र और आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए पर्याप्त धन इंसानी जीवन को सुखमय बनाने के लिए सबसे अहम होता है। किसी व्यक्ति को यदि ये तीनों चीजें मिल जाएं तो उसके लिए उसका घर ही स्वर्ग बन जाता है। ऐसे लोगों को किसी और स्वर्ग की कोई इच्छा नहीं रहती।
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आहरनिद्रामय मैथुननानि, समानि चैतानि नृणा पशूनाम।
ज्ञानपं नराणामधिको विशेषो ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:।।
आचार्य चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से कहते हैं कि इंसान भी अन्य जीवों की तरह उदर-पोषण, भय, निद्रा, संभोग और संतानोप्ति जैसी क्रियाएं करता है। ऐसे में अगर देखा जाए तो पशुओं और इंसान में शारीरिक संरचना के अलावा कोई विशेष अंतर नहीं है, लेकिन इंसानों का अचरण ही इन्हें पशुओं से श्रेष्ठ सिद्ध करता है। जो व्यक्ति धर्माचारण और धर्म-कर्म-नैतिक गुणों से युक्त होते हैं, वहीं असल में इंसान कहलाने के लायक है। इसके विपरीत अन्य लोग पशु के समान होते हैं।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)