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aja ekadashi 2021 Date : अजा एकादशी का पौराणिक महत्व, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

Updated Aug 30, 2021 | 13:55 IST

aja ekadashi 2021 : भादो मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। भगवान विष्णु को यह तिथि अत्यंत प्रिय है। जाने 2021 में अजा एकादशी कब है।

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अजा एकादशी 2021 (Pic : Istock)
मुख्य बातें
  • भगवान विष्णु को एकादशी की तिथि है अत्यंत प्रिय।
  • भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं
  • अजा एकदशी की पूजा में तुलसी दल जरूर शामिल किया जाता है

aja ekadashi 2021 date : सनातन हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार हर वैष्णव को एकादशी का व्रत करना चाहिए। एकादशी महीने में दो बार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में आती है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस साल अजा एकादशी 3 सितंबर को मनाई जाएगी। सनातन धर्म में एकादशी के व्रत को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दिन जगत के पालनहर्ता श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। भगवान विष्णु को यह तिथि अत्यंत प्रिय है। आइए जानते हैं अजा एकादशी का शुभ मुहुर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।

aja ekadashi 2021 date and time, अजा एकादशी 2021 तिथि और शुभ मुहूर्त

  • अजा एकादशी – 3 सितंबर 2021
  • एकादशी तिथि प्रारंभ -  2 सितंबर 2021, गुरुवार सुबह 6:21 से
  • एकादशी तिथि समाप्ति – 3 सितंबर 2021, शुक्रवार सुबह 07:44 तक
  • अजा एकादशी पारण – 4 सितंबर 2021, शनिवार सुबह 5:30 से 8:23 तक

aja ekadashi puja vidhi in hindi 

इस दिन सुबह स्नान आदि कर निवृत हो जाएं। स्नान करने के बाद साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद मंदिर की साफ सफाई कर पूर्व दिशा की तरफ एक चौकी रखें, उस पर पीला या लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ती स्थापित करें। तथा भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें। पुष्प और तुलसी अर्पित करने के बाद भगवान विष्णु की आरती करें। भगवान को सात्विक चीजों का भोग लगाएं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करना चाहिए, बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग स्वीकार नहीं करते हैं। ध्यान रहे इस दिन आप पूरे दिन निराहार रहकर शाम को फल ग्रहंण कर सकते हैं।


 
अजा एकादशी पौराणिक कथा, aja ekadashi ki katha 

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत कथा सुनाते हुए बताया था कि, सत्युग में एक अत्यंत वीर प्रतापी तथा सत्यवादी हरीशचंद्र नामक राजा राज करता था। उसने स्वप्न में ऋषि विश्वामित्र को दक्षिणा चुकाने के लिए अपना सारा राज्य व धन दान कर दिया। साथ ही उसे अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को भी बेचना पड़ा। इसके बाद वह स्वयं एक चाण्डाल के दास बन गए। वह चाण्डाल के यहां मृतकों का वस्त्र ग्रहंण करता रहा, लेकिन इस कार्य में भी वह किसी प्रकार से भी सत्य से विचलित नहीं हुए। जब इस कार्य को करते हुए कई वर्ष बीत गए तो उन्हें अपने इस कृत्य पर बड़ा दुख हुआ और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगे।
वह सदैव इसी चिंता में रहने लगे कि मैं इस नीच कर्म से मुक्ति पाने के लिए क्या करू? इस चिंता में राजा को कई वर्ष बीत गए। एक दिन वह इसी चिंता में बैठे हुए थे, तभी वहां पर गौतम ऋषि आ पहुंचे। राजा गौतम ऋषि को देखकर काफी प्रसन्न हुए। हरीशचंद्र ने उन्हें दण्डवत प्रणाम किया और अपनी दुखभरी कथा सुनाई।

राजा हरीशचंद्र की दुखभरी कहानी सुन महर्षि गौतम भी अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने राजा से कहा हे राजन आज से सात दिन बाद भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की एकादशी आएगी, इस एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। तुम इस एकादशी पर विधि पूर्वक व्रत करो और रात में यज्ञ और जागरण करो। इससे व्रत के पुण्य प्रताप से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे और वैकुंण्ठ लोक की प्राप्ति होगी।
यह कहकर गौतम ऋषि अतंरध्यान हो गए। राजा हरीशचंद्र ने उनके कहे अनुसार अजा एकादशी पर व्रत कर रात में जागरण किया।

इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गए। उन्होंने ब्रम्हा, विष्णु महेश के अपने समक्ष पाया। तथा अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी पत्नी को राजसी वस्त्र और आभूषणों से परिपूर्ण देखा। व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: अपने राज्य की प्राप्ति हुई। अजा एकादशी के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए। ऐसे में इस दिन विधि पूर्वक व्रत करने और रात में जागरण करने से आपके सभी पापों का नष्ट होता है और विशेष फल की प्राप्ति होती है।
 

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