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लक्ष्मी पूजा: लक्ष्मी चालीसा के अलावा शुक्रवार को करें ये दो टोटके, धन-धान्य से युक्त हो जाएगा आपका घर

Updated Jun 20, 2019 | 17:29 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

मां लक्ष्मी धन,वैभव के प्रतीक के रूप में जानी जाती हैं। यहां प्रस्तुत है कुछ उपाय जिनकी बदौलत आप मां लक्ष्मी की अराधना कर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspThinkstock
Goddess Lakshmi

नई दिल्ली: हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी धन,वैभव का प्रतीक मानी गई है। शुक्रवार को मां लक्ष्मी का दिन माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक उनकी अराधना करने से खासकर लक्ष्मी चालीसा का पाठ रोज करने से उनकी असीम अनुकम्पा प्राप्त होती है । घर में धन की स्थिरता होती है।  जीवन में धन की कमी दूर होती है। इसलिए लक्ष्मी चालीसा का पाठ धन-वैभव के लिए करना चाहिए। 

शुक्रवार के दिन अगर आप लक्ष्मी चालीसा के पाठ के बाद दो टोटकों को करते हैं तो आपके घर में अगर रुपए-पैसे की दिक्कत है, आप कर्ज में डूबे है तो आपकी यह समस्या दूर हो सकती है। पहला टोटका नारियल से जुड़ा है। देवी की अराधना के बाद आप लाल कपड़े में  एक सूखे नारियल को बांध दे और फिर एक सिक्का उसके उपर चिपका दें। फिर उसे जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से आपके जीवन में रुपए पैसे की दिक्कत अगर है तो दूर होगी और घर में वैभव सुख शांति स्थिरता आएगी।

दूसरा टोटका एक काले रंग के कपड़े और कौड़ियों से जुड़ा हुआ है। आप शुक्रवार को पूजा के बाद 11 कौड़ियों को काले रंग के कपड़े में बांध दे। उसके बाद आप इसे जहां आपकी तिजोरी या अलमारी है वहां रख दें। ऐसा करने से आपके घर में सौभाग्य का वास होगा और धन की घर में बरकत होगी। इस दिन शाम को मंदिर में लक्ष्मी जी की मूर्ति के सामने और तुलसी जी के सामने दीया जलाना नहीं भूले।

लक्ष्मी चालीसा 

। दोहा।
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस।
। सोरठा।

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका।

। चौपाई ।

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ।

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी।
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा।1।

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी।
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी।2।

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी।
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी।3।

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी।
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता।4।

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो।
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी।5।

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा।
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा।6।

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं।
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी।7।

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी।
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई।8।

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई।
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई।9।

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई।
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी।10।

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै।
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।11।

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना।
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै।12।

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा।
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै।13।

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा।
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं।14।

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई।
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा।15।

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी।
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं।16।

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै।
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी।17।

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी।
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में।18।

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण।
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई।19।

। दोहा।

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश।
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर।
 

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