Geeta Gyan In Lock down Part 13: गीता में बार-बार ईश्वर पर पूर्ण रूप से विश्वास कर खुद को उन्हें सौंप देने की बात कही गई है। अतः मनुष्य को ईश्वर की भक्ति में पूर्णतः खुद को समर्पित कर देना चाहिए, जो भी हो रहा है उसे उनकी ही इच्छा मानकर उनका नाम जपना चाहिए। ऐसा करने वाला मनुष्य संसार के समस्त पापों से मुक्त हो ईश्वर के कृपा का पात्र बनता है और उसके सभी पापों का नाश होता है। आइए जानते है कि गीता के अनुसार भक्तजन को क्या करना चाहिए।
गीता:अध्याय 10 श्लोक 03
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम।
असम्मूधः स मत्र्येषु सर्वपापै प्रमुच्यते।।
भावार्थ- भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो भी भक्त मुझको अजन्मा, अनादि व सम्पूर्ण जगत का सबसे महान ईश्वर तत्व से जानता है, वह ज्ञानवान मनुष्य सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। अनादि मतलब जो सबका कारण व आदिरहित से है।
दार्शनिक व आध्यात्मिक व्याख्या- भगवान अनादि है। पहले इसको जाना जाय। समस्त ब्रम्हांड व जीवों के उत्पत्ति का कारण व जिसके कारण सृष्टि है। अब अजन्मा पर आते हैं। भगवान कहते हैं कि मैं अजन्मा हूं। अब कोई प्रश्न करेगा कि राम व कृष्ण का तो जन्म हुआ है। ब्रम्ह अनामय अज भगवंता, ब्यापक अजित अनादि अनंता। ये पंक्ति गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में लिखी है। यहां ब्रम्ह को अनादि कहा गया है। फिर अवतार क्यों हुआ इसके लिए अगली पंक्ति देखें- गो, द्विज, धेनु, देव हितकारी, कृपासिन्धु मानुष तनुधारी।।
अर्थात- भगवान गो, द्विज, धेनु व देव जनों के हित के लिए मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं। अतः राम व कृष्ण भगवान के अवतार हैं। अब अगली बात कही गयी है इस ईश्वर तत्व को जानना। जब हम सम्पूर्ण संसार में सिर्फ व सिर्फ ईश्वर तत्व को ही जानते हैं तो समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। अब यहां फिर भक्ति के प्रकार को जानना होगा। मन्त्र जाप मम दृढ़ विस्वासा, पंचम भगति सो वेद प्रकासा। पंचम भक्ति का जिक्र है मानस में। भगवान की सत्ता में पूर्ण विश्वास करते हुए मन्त्र व नाम इत्यादि को जानकर जपना। गीता बार बार समर्पण पर ही घूमकर आती है। सम्पूर्ण जगत के स्वामी को भगवान व केवल भगवान ही मानकर उनको अनादि मानते हुए केवल उन्हीं की भक्ति करते हुए अपने आपको उनको समर्पित कर दें तो हम समस्त पापों से मुक्त हो जाएंगे।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस श्लोक का अनुसरणीय उपदेश- जो भी हो रहा है उसको भगवान की इच्छा जानते हुए उसको स्वीकार करते हुए अनुशासन में रहें व उसकी सत्ता को सर्वोपरि मानें। भगवान अजन्मा है। वह समय समय पर पकृति को संतुलित भी करता है। यदि हम अनादि भगवान की सत्ता में पूर्ण विश्वास करते हुए उसे ही सब कारणों का कारण जानकर उनकी भक्ति करें तो भय व दुःख से मुक्ति मिलती है तथा समस्त पापों का भी नाश होता है।