- भाद्रपद पूर्णिमा के दिन किया जाता है उमा महेश्वर व्रत।
- इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने का है विशेष विधान।
- संतान प्राप्ति के लिए भी महिलाओं के लिए यह व्रत है बेहद खास।
bhado Purnima 2021 : सनातन हिंदु धर्म में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत कर चंद्रदेव की अराधना करने मात्र से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने का भी विशेष विधान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा पर सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने से सभी कष्टों का निवारण होता है। वहीं नारद पुराण के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा के दिन उमा महेश्वर व्रत किया जाता है। इस दिन किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करने से विशेष लाभ मिलता है।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से ही पितृ पक्ष का आरंभ होता है, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। इस साल भाद्रपद पूर्णिमा तिथि आज यानि 20 सितंबर 2021, सोमवार को है। ऐसे में इस लेख के माध्यम से आइए जानते हैं भाद्रपद पूर्णिमा तिथि का शुभ मुहूर्त, महत्व और व्रत कथा के बारे में संपूर्ण जानकारी।
Bhadrapad/bhado Purnima 2021 Date, भाद्रपद पूर्णिमा तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदु पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 20 सितंबर 2021, सोमवार को है। नारद पुराण में वर्णित है कि इस दिन उमा महेश्वर व्रत भी रखा जाता है। इस दिन चंद्र देव की अराधना करने व सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और समस्त कष्टों का नाश होता है। यहां जानिए पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त।
Bhadrapad/bhado Purnima shubh muhurat, भाद्रपद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
- पूर्णिमा तिथि की शुरुआत: 20 सितंबर 2021 सोमवार, 05:28 Am से
- पूर्णिमा का समाप्ति: 21 सितंबर 2021 मंगलवार, 5:24 Am तक
पूर्णिमा व्रत का महत्व
सभी पूर्णिमा तिथियों में भाद्रपद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन चंद्रदेव की पूजा अराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन से पितृ पक्ष या श्राद्ध की शुरुआत भी होती है। पूर्णिमा तिथि के दिन सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने से भी विशेष पुण्य प्राप्त होता है तथा सभी कष्टों का निवारण होता है।
Bhadrapad / bhado Purnima vrat katha, भाद्रपद पूर्णिमा व्रत की कथा
पौराणिक ग्रंथो में भाद्रपद पूर्णिमा की एक कथा काफी प्रचलित है। द्वापर युग में एक बार यशोदा मां ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि वह उन्हें एक ऐसा व्रत बताएं जिसको करने से मृत्यु लोक में स्त्रियों को विधवा होने का भय ना रहे तथा वह व्रत मनुष्यों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला हो। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए यशोदा मां को एक ऐसे व्रत की कहानी विस्तार से बताते हुए कहा कि सौभाग्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को 32 पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। यह व्रत अचल सौभाग्य देने वाला और भगवान शिव के प्रति मनुष्यों की भक्ति बढ़ाने वाला है।
इसे सुन योशादा मां ने श्रीकृष्ण से पूछा कि इस व्रत को मृत्युलोक में किसने किया था। इस पर श्रीहरि ने बताया कि इस धरती पर एक रत्नों से परिपूर्ण कार्तिका नाम की नगरी थी, वहां चंद्रहास नामक एक राजा राज करता है। उसी नगरी में एक धनेश्वर नामक ब्राम्हण था, उसकी बहुत सुंदर और सुशील पत्नी थी। जिसका नाम रूपवती था, दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे और उस नगरी में बहुत प्रेम से रहते थे। उनके घर में धन धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान ना होने के कारण वह अक्सर चिंतित रहा करते थे।
एक दिन एक योगी उस नगरी में आय़ा, वह नगर के सभी घरों से भिक्षा लेता था। परंतु रूपवती के घर से कभी भिक्षा नहीं लेता था। एक दिन वह योगी रूपवती से भिक्षा ना लेकर किसी अन्य से भिक्षा लेकर गंगा किनारे बैठकर प्रेमपूर्वक खा रहा था। तभी अपने भिक्षा के अनादर से दुखी होकर धनेश्वर योगी से भिक्षा ना लेने की वजह पूछता है। इस पर योगी ने कहा कि निसंतान के घर की भीख पतिथों के अन्न के समान होती है और जो पतिथो का अन्न ग्रहण करता है वह भी पतिथ हो जाता है। इसलिए पतिथ हो जाने के भय से उनके घर की भिक्षा नहीं लेता है।
इसे सुन धनेश्वर अत्यंत दुखी हो गए और उन्होंने योगी से पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। यह सुन योगी ने उन्हें मां चंडी की उपासना करने के लिए कहा। धनेश्वर देवी चंडी की उपासना करने के लिए वन में चला गया, मां चंडी ने धनेश्वर की भक्ति से प्रसन्न होकर 16वें दिन उसे दर्शन दिया औऱ कहा कि उसके यहां पुत्र होगा, लेकिन वह केवल 16 वर्षों तक ही जीवित रहेगा। यदि वह स्त्री और पुरुष 32 पूर्णिमा का व्रत करेंगे तो वह दीर्घायु हो जाएगा। उन्होंने कहा कि यहां एक आम का वृक्ष दिखाई देगा, उस वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़कर उसे घर ले जाएं और पत्नी को सारी बात बताएं। तथा स्नान कर वह शंकर भगवान का ध्यान कर उस फल को खा ले, तो वह भगवान शिव की कृपा से गर्भवती हो जाएगी। इस उपाय को करने के बाद धनेश्वर को पुत्र की प्राप्ति हुई तथा 32 पूर्णिमा का व्रत करने से पुत्र को दीर्घायु की प्राप्ति हुई।
उमा महेश्वर व्रत कथा
इस व्रत का वर्णन नारद पुराण और मत्यस्य पुराण में किया गया है। यह कथा भगवान विष्णु से संबंधित है। एक बार महर्षि दुर्वासा कैलाश पर्वत से भगवान शिव के दर्शन करके लौट रहे थे। तभी रास्ते में उनकी मुलाकात भगवान विष्णु से हुई, उन्होंने प्रसाद के तौर पर विष्णु जी को बेलपत्र की माला दी। भगवान विष्णु ने उस माला को गरुण के सिर में डाल दिया। इसे देख दुर्वासा ऋषि अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने विष्णु जी को श्राप दे डाला, कि वह मां लक्ष्मी से दूर हो जाएंगे, उनसे क्षीर सागर छिन जाएगा और शेषनाग भी उनकी सहायता नहीं कर पाएंगे। इसे सुन विष्णु जी चिंतित हो गए और उन्होंने दुर्वासा ऋषि से क्षमा मांगते हुए कहा कि वह उन्हें इस श्राप से मुक्त होने का उपाय बताएं।
इसके बाद दुर्वासा ऋषि ने बताया कि उमा महेश्वर व्रत करो, उसी से मुक्ति मिलेगी। तब भगवान विष्णु ने यह व्रत किया और इसके प्रभाव से लक्ष्मी जी समेत समस्त शक्तियां वापस मिल गई।