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Bilva Nimantran 2020: जानें देवी मां को बिल्व निमंत्रण देने की प्रथा, व‍िस्‍तार से जानें परंपरा और कथा

Updated Oct 21, 2020 | 06:08 IST

Bilva Nimantran to the goddess: शारदीय नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर देवी शक्ति को बिल्व निमंत्रण दिया जाता है। ये पंरपरा क्या है, आइए आपको इसके बारे में बताएं।

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Bilva Nimantran to the goddess, देवी को बिल्व निमंत्रण प्रथा के बारे में जानें
मुख्य बातें
  • षष्ठी के दिन देवी धरती पर अपने दल-बल के साथ आती हैं
  • देवी को निंद्रा से जगाकर धरती पर बुलाया जाता है
  • बोधन परंपरा के बाद देवी की आंखों को खोला जाता है

बिल्व निमंत्रण शारदीय नवरात्रि की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा है। इसमें देवी को बिल्वपत्र पर निमंत्रण दिया जाता है। खास कर ये निमंत्रण पूजा पंडाल जहां लगते हैं, वहां देवी को दिया जाता है, लेकिन यह परंपरा बहुत मायने रखती है। दुर्गा पूजा उत्सव में षष्ठी, सप्तमी, महाअष्टमी, नवमी और विजयादशमी का विशेष महत्व होता है। पंडालों में देवी के नेत्र षष्ठी तक ढके रहते हैं और सप्तमी से उनके नेत्र खुलते हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है। तो आइए आपको इस कथा और परंपरा से जुड़ी हर एक बात बताएं।

जानें, क्या है पौराणिक कथा 

देवी दुर्गा शारदीय नवरात्रि के समय धरती पर आती है। देवी कैलाश पर्वत को छोड़ धरती पर अपने भक्तों की बीच रहती हैं। देवी दुर्गा धरती पर अकेले नहीं बल्कि देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, कार्तिकेय और गणेश के साथ अवतरित होती हैं। देवी षष्ठी के दिन धरती पर आईं थीं। यह दक्षिणायन का समय होता है और इस समय सभी देवी-देवता निद्रा में रहते हैं, इसलिए उनकी पूजा करने के लिए उन्हें निद्रा से जगाना होता है। शारदीय दुर्गापूजा को अकाल बोधन भी कहा जाता है। बिल्व निमंत्रण दे कर देवी को धरती पर आगमन का न्योता दिया जाता है और देवी नींद से जाग कर धरती पर आती हैं।

बिल्व निमंत्रण परंपरा 

देवी दुर्गा षष्ठी तिथि को धरती पर आईं थी। इसलिए षष्ठी के दिन बिल्व निमंत्रण पूजन, कल्पारंभ, अकाल बोधन, आमंत्रण की परंपरा है। इसी दिन से काल प्रारंभ षष्ठी की तिथि मनाई जाती है। पांडलों में घट स्थापना कर मां दुर्गा की स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद अगले तीन दिन महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी के दिन मां की पूजा आराधना की जाती है। महाष्टमी को दुर्गा पूजा का मुख्य दिन माना जाता है। महाष्टमी पर संधि पूजा होती है। यह पूजा अष्टमी और नवमी दोनों दिन चलती है। संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधिक्षण कहते हैं।

जानें, बोधन परंपरा के बारे में

बोधन जिसे अकाल बोधन के नाम से भी जाना जाता है। बोधन की क्रिया शाम को संपन्न की जाती है। बोधन से तात्पर्य है, नींद से जगाना। इस मौके पर मां दुर्गा को नींद से जगाया जाता है। देवी-देवता दक्षिणायान काल में निंद्रा में होते हैं। चूंकि दुर्गा पूजा उत्सव साल के मध्य में दक्षिणायान काल में आता है, इसलिए देवी दुर्गा को बोधन के माध्यम से नींद से जगाया जाता है। बताया जाता है कि भगवान श्री राम ने सबसे पहले आराधना करके देवी दुर्गा को जगाया था और इसके बाद रावण का वध किया था।

बोधन की परंपरा में किसी कलश या अन्य पात्र में जल भरकर उसे बिल्व वृक्ष के नीचे रखा जाता है। बिल्व पत्र का शिव पूजन में बड़ा महत्व होता है। बोधन की क्रिया में मां दुर्गा को निंद्रा से जगाने के लिए प्रार्थना की जाती है। बोधन के बाद अधिवास और आमंत्रण की परंपरा निभाई जाती है। देवी दुर्गा की वंदना को आह्वान के रूप में भी जाना जाता है। बिल्व निमंत्रण के बाद जब प्रतीकात्मक तौर पर देवी दुर्गा की स्थापना कर दी जाती है, तो इसे आह्वान कहा जाता है जिसे अधिवास के नाम से भी जाना जाता है।

इसलिए सप्तमी पर खुलती हैंं देवी की आंखें

बिल्व निमंत्रण और बोधन के बाद देवी जागती हैं तब उनकी आंखों को खोला जाता है। यही कारण है कि पूजा पंडालों मे देवी की आंंखें षष्ठी तक बंद रहती हैं। सप्तमी पर आंखें खुलने के बाद पंडालों में आम लोग भी पूजा के लिए जाते हैं।

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