- नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करनी चाहिए।
- मां शैलपुत्री पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं।
- मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से वैवाहिक जीवन रहता है खुशहाल।
Navratri 2022 1st Day Maa Shailputri Puja Vidhi, Vrat Katha and Mantra: नवरात्रि का पावन पर्व भारतवर्ष में आज बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि मां दुर्गा के नौ रूपों की साधना और सिद्धि का दिव्य समय है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। मां शैलपुत्री को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करुणा और ममता का स्वरूप माना जाता है। माता अत्यंत सरल एवं सौम्य स्वभाव की हैं। पूर्व जन्म में मां शैलपुत्री राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थी। मान्यता है कि नवरात्रि के पहले दिन विधि विधान से मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और सभी कष्टों का निवारण होता है। तथा माता का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव बना रहता है।
सफेद वस्त्र धारण किए हुए माता के दाहिने हांथ में त्रिशूल और बाएं हांथ में कमल का फूल शोभायमान है तथा माथे पर चंद्रमा सुशोभित है। माता बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान हैं। माता को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को सफेद रंग का फूल चढ़ाने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो मां शैलपुत्री सभी जीव जंतुओं की रक्षक मानी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती ने शैलपुत्री के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया था। ऐसे में नीचे क्लिक कर आप मां शैलपुत्री की पूजा विधि, आरती और पौराणिक कथा (Navratri 1st Day Maa Shailputri Puja Vidhi) जान सकते हैं।
मां शैलपुत्री पूजा विधि, Maa Shailputri Puja Vidhi
नवरात्रि के पहले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर सफेद वस्त्र धारण करें। इसके बाद लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गंगा जल का छिड़काव करें, इसके ऊपर केसर से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। अब इसके ऊपर मां शैलपुत्री की प्रतिमा स्थापित करें। यदि आपके मंदिर में मां शैलपुत्री की प्रतिमा अलग से नहीं है तो मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। मां शैलपुत्री देवी भगवती का ही स्वरूप हैं। इस दिन माता को सफेद वस्त्र और सफेद फूल चढ़ाना चाहिए। साथ ही सफेद रंग की मिठाइयों का भोग लगाएं, माता के चरणों में गाय का घी अर्पित करें। तत्पश्चात मां शैलपुत्री के मंत्रों का 108 बार जाप करें और माता की आरती का पाठ करें।
मान्यता है कि माता को सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाने व चरणों में घी अर्पित करने से माता प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर सदैव अपना आशीर्वाद बनाए रखती हैं।
मां शैलपुत्री के मंत्र, Maa Shailputri Mantra
ओम् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:।
ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
ध्यान मंत्र (maa shailputri dhyan mantra)
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
मां शैलपुत्री की आरती, Maa Shailputri Aarti
शैलपुत्री मां बैल पर सवार, करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि सिद्धि परवान करे तू। दये करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने तेरी उतारी।
उसकी सगरी आस जगा दो। सगरे दुख तकलीफ मिटा दो।
घी का सुंदर दीप जलाकर। गोला गरी का भोग लगा कर।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी। शिव मुख चंद चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
माता शैलपुत्री की पौराणिक कथा, मां शैलपुत्री की कहानी (Maa Shailputri Vrat Katha In Hindi)
मां शैलपुत्री को माता पार्वती का स्वरूप माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं व राजा महाराजाओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव का औघड़ रूप होने के कारण उन्हें आमंत्रित नहीं किया। जब देवी सती को अपने पिता द्वारा आयोजित इस विशाल यज्ञ के बारे में पता चला तो उनका मन यज्ञ में शामिल होने के लिए व्याकुल होने लगा। उन्होंने भोलेनाथ से अपनी इच्छा जताई, भोलेनाथ ने कहा कि किसी कारण रुष्ट होकर राजा दक्ष ने हमें यज्ञ में शामिल होने का न्योता नहीं दिया है। इसलिए बिना आमंत्रण के यज्ञ में शामिल होना कदाचित उचित नहीं है।
लेकिन देवी सती लगातार यज्ञ में शामिल होने के लिए भगवान शिव से कहती रही, माता सती के आग्रह पर भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में शामिल होने की अनुमति दे दी। जब माता सती यज्ञ में पहुंची तो उन्होंने देखा के राजा दक्ष भगवान शिव के बारे में अपशब्द कह रहे थे। पति के इस अपमान को देख माता सती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्रांण त्याग दिए। इसके बाद माता सती ने दूसरा जन्म शैलपुत्री के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर लिया।