- लठ्ठमार होली मथुरा में खेली जानेवाली पौराणिक होली है
- इसे नंदगांव सहित कई गांवों में खेला जाता है
- होली के रंग की विविध लीला कई दिनों तक चलती रहती है
मथुरा/नई दिल्ली: मंगलवार यानी 23 मार्च को मथुरा के बरसाना में दुनिया भर में प्रसिद्ध ब्रज की लट्ठमार होली खेली जाएगी। ऐसा ही आयोजन ठीक अगले दिन अगले दिन बुधवार को नंदगांव में होगा। दूर दूर से लोग लठमार होली को देखने के लिए बरसाना और नंदगांव आते हैं। इस बार भी उनका आगमन होने लगा है जिसके मद्देनजर प्रशासन ने सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए हैं। परंपरा के अनुसार, आयोजन से एक दिन पहले दोनों ही गांवों के लोग होली खेलने का निमंत्रण देने के लिए एक-दूसरे के गांवों में जाते हैं। बरसाना में लड्डू होली 22 मार्च को हुई , लट्ठमार होली 23 मार्च को होगी और 24 मार्च को लठमार होली नन्दगांव में खेली जाएगी।
क्या है होली की परंपरा?
बरसाना के गोस्वामी समाज के सदस्य कृष्णदयाल गौड़ उर्फ कोका पण्डित के मुताबपिक सोमवार को बरसाना स्थित राधारानी के महल से राधारानी की सखियां गुलाल लेकर कान्हा के गांव नन्दगांव जाएंगी और होली खेलने का निमंत्रण देंगी। यह गुलाल नन्दगांव के गोस्वामी समाज में वितरित किया जाएगा। तब नन्दभवन में राधारानी की सखियों के साथ धूमधाम से फाग आमंत्रण महोत्सव मनाया जाएगा।
फाग आमंत्रण महोत्सव में स्थानीय गोस्वामी समाज के सदस्य और राधारानी की सखियां होली गीतों पर लोकनृत्य करते हैं। इसके बाद सखियों को आदर के साथ विदा किया जाता है। सखियां बरसाना के श्रीजी महल (लाड़िलीजी यानि राधारानी के मंदिर) में होली निमंत्रण को स्वीकार किए जाने की सूचना देती हैं।
बरसाना और नंदगांव की लठमार होली
इस होली की शुरुआत राधा और श्रीकृष्ण के शाश्वत प्रेम से जुड़ी है। भगवान श्रीकृष्ण और उनके सखा नंदगांव से बरसाना आते हैं और राधा रानी को अलग-अलग रंगों की बारिश कर उन्हें सांवले रंग में रंगने का प्रयास करते हैं। तब राधा अपनी सखियों के साथ कृष्ण और उनके मित्रों की लाठियों से पिटाई करती थी और होली के विविध रंगों में रची बसी परंपरा आज भी चली आ रही है।
कहां-कहां खेली जाती है लठामार होली
मथुरा, वृंदावन, नंदगांव में भी लट्ठमार होली खेली जाती है। बरसाने की गोपियां अर्थात महिलाएं सखाओं को लाठियों से पीटती हैं और सखा इनसे बचने का प्रयास करते हैं। इस दौरान गुलाल-अबीर खूब उड़ते रहते हैं। अगले दिन बरसाने वाले वृंदावन की महिलाओं के संग होली खेलने जाते हैं। ये सारी होली बरसाने और वृंदावन के मंदिरों में खेली जाती है। इस होली की खासियत ये है कि इसमें दूसरे गांव से आए सखाओं पर ही लाठिंया बरसती हैं।
अपने गांव वालों पर लाठियां नहीं बरसाई जातीं। इस होली के दौरान आसपास खड़े लोग गुलाल-अबीर उड़ाते रहते हैं। लठमार होली खेल रहे पुरुषों को होरियारे और महिलाओं को हुरियारिन कहा जाता है। रंगों में रंगने और प्यार से लठ्ठ खाने और मारने का सिलसिला घंटों चलता रहता है जिसकी शुरुआत भगवान कृष्ण और राधा से हुई थी।
क्या होता है लड्डू लीला और पांडे लीला
दोपहर बाद नन्दगांव का एक हरकारा (प्रतिनिधि) राधारानी के निवास पर जा कर उन्हें निमंत्रण स्वीकार किए जाने की बधाई देने के साथ ही नन्दगांव में होली खेलने के लिए आने का निमंत्रण देता है। इस दौरान लड्डुओं का वितरण होता है जिसे ‘लड्डू लीला’ अथवा ‘पाण्डे लीला’ भी कहा जाता है।
इस दिन बरसाना की गोपियां नन्दगांव से आए पुरुषों पर लाठियां बरसाकर होली खेलती हैं। नन्दगांव के हुरियारे (होली खेलने वाले) बरसाना की हुरियारिनों (होली खेलने वालियां) की लाठियों की मार अपने हाथों में ली हुई चमड़े की या धातु से बनीं ढालों पर झेलते हैं। बरसाना के हुरियार एवं राधारानी मंदिर के सेवायतों में से एक डॉ. संजय गोस्वामी के मुताबिक बरसाना की लट्ठमार होली देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। तब यहां अद्भुद माहौल रहता है।
क्या है इंतजाम?
उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद, वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बरसाना और नन्दगांव को तीर्थस्थल तथा लट्ठमार होली आयोजन को राजकीय मेला घोषित कर दिया है, सुरक्षा की दृष्टि से पूरे बरसाना क्षेत्र को पांच जोन और 12 सेक्टरों में विभाजित कर सभी अधिकारियों सहित करीब एक हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। राधारानी के मंदिर में व्यवस्था संभालने के लिए तो कमाण्डो लगाए गए हैं जो हर गतिविधि पर नजर रखते हुए व्यवस्था बनाए रखेंगे। बरसाना तथा उसके आसपास के मेला क्षेत्र में छोटे-बड़े सभी वाहनों का प्रवेश बंद है।