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देवी के इस मंदिर में हर संकट से मिलती है मुक्ति, पांडवों ने एक पैर पर खड़े होकर की थी मां की उपासना

Sankha Devi Temple of Kashi, काशी स्थित संकठा देवी मंदिर
Updated Dec 05, 2020 | 21:07 IST

Sankha Devi Temple of Kashi: काशी मोक्षदायनी मानी गई है। शिव की इस नगरी कई ऐसे चमत्कारिक मंदिर अन्य देवी-देवताओं के भी हैं, जहां आने भर से मनुष्य के कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसा ही मंदिर मां सकंठा का भी है।

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Sankha Devi Temple of Kashi, काशी स्थित संकठा देवी मंदिरSankha Devi Temple of Kashi, काशी स्थित संकठा देवी मंदिर
Sankha Devi Temple of Kashi, काशी स्थित संकठा देवी मंदिर
मुख्य बातें
  • इस मंदिर में हर संकट से मनुष्य को मुक्ति मिलती है
  • पांडवों ने एक पैर पर की थी देवी की आराधना
  • भगवान शिव को मिली थी यहीं व्याकुलता से मुक्ति

काशी में बहुत से सिद्धपीठ हैं। महादेव की नगरी में प्रत्येक मंदिर की अपनी ही एक खासियत और पौराणिक इतिहास रहा है। इन मंदिरों की प्राचीनता सतुयग और द्वारयुग से रही है। यहां के मंदिरों में देवी-देवताओं तक ने जप और तप किए हैं। ऐसा ही एक मंदिर देवी संकठा का भी हैं, जहां महाभारत युद्ध के पहले पांडवों ने एक पैर पर खड़े हो कर मां की पूजा की थी। महाश्मशान मणिकर्णिका घाट से कुछ दूरी पर ही मां संकटा का मंदिर है। मान्यता है कि यहां माता के दर्शन मात्र से मनुष्य के कष्ट दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गंगा नदी के किनारे स्थित संकठा देवी का मंदिर सिद्धपीठ है। जब देवी सती ने अपने पिता के यज्ञ कुंड में खुद को सती किया था तब भगवान शंकर बहुत ही व्याकुल हो गए थे। तब भगवान शिव ने अपने मन की शांति और आत्मबल के लिए मां संकठा के इसी मंदिर में पूजा की थी। मां के आशीर्वाद और तपोबल से शिवजी को शांति की प्राप्ति यहीं हुई थीं और देवी पार्वती का साथ भी मिला था।

मंदिर में देवी की बेहद अलौकिक प्रतिमा स्थापित की गई है। इस मंदिर की पौराणिक कथा में उल्लेखित है कि जब पांडव अज्ञातवास में थे तो उस समय वह आनंद वन आए थे। काशी को पहले आनंद वन के नाम से ही जाना जाता था। यहां पांडवों ने मां संकटा की भव्य प्रतिमा स्थापित की और बिना अन्न-जल ग्रहण किए कए पैर पर पांचों भाईयों ने पूजा की थी। पांडवों के तप से प्रसन्न हो कर देवी ने उन्हें दर्शन दिए और और आशीर्वाद दिया कि गौ माता की सेवा करने पर उन्हें लक्ष्मी व वैभव की प्राप्ति होगी और उनके सारे संकट दूर हो जायेंगे। साथ ही वह विजयी भी होंगे। इसके बाद महाभारत के युद्ध में पांडवों ने कौरवों को पराजित किया था। इसलिए यहां मान्यता है कि देवी मां के दर्शन के बाद सभी गौ माता की सेवा जरूर करनी चाहिए।

नारियल व चुनरी चढ़ाने की है परंपरा

मां संकटा को केवल यहां नारियल व चुनरी प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि देवी को चढ़े नारियल का स्वाद प्रसाद के रूप में बहुत ही स्वादिष्ट हो जाता है। यह सिद्धपीठ की शक्ति का असर होता है। देवी की चुनरी को सुहाग की चुनरी की तरह प्रयोग किया जाता है।

मन की इच्छा पूर्ति के लिए जरूर आएं इस मंदिर में दर्शन के लिए

यदि आपकी कोई इच्छा पूरी नहीं हो पा रही तो आपको मां संकटा के मंदिर में अपनी आस लेकर जरूर आना चाहिए। यहां आ कर देवी के समक्ष अपनी मन की आस या परेशानी बताएं। निश्चित तौर पर आपकी समस्या का हल निकल आएगा। देवी की पूजा का विशेष दिन शुक्रवार होता है और इस दिन यहां दर्शन-पूजन जरूर करना चाहिए।

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