- आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है, इसे हरिशयनी एकादशी भी कहा गया है।
- देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु शयन काल में चले जाते हैं और इस तिथि से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है।
- देवशयनी पर भगवान विष्णु की पूजा करने से तथा कथा का पाठ करने से भक्तों के पाप दूर होते हैं तथा उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
Devshayani Ekadashi 2021 Ki vrat katha Hindi mein: सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना गया है। इस एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है और शादी-विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि जैसे शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं। इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा के साथ कथा का भी पाठ करना लाभदायक माना गया है। कथा का पाठ करने से भक्तों को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष समस्त एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को पड़ रही है। यह एकादशी हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु इस एकादशी से चार मास के लिए शयन काल में चले जाते हैं और भगवान शिव इस संसार की जिम्मेदारी उठाते हैं।
देवशयनी एकादशी की पौराणिक कहानी, Devshayani ekadashi vrat katha, हरिशयनी एकादशी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा मांधाता तिनों लोकों में बहुत प्रख्यात थे। वह अपनी प्रजा को समर्पित थे और उनके लिए ही कार्य करते थे। एक बार उनके राज्य में भयंकर अकाल की समस्या आ खड़ी हुई जिसके वजह से परिस्थिति बेहद नाजुक हो गई थी। अपनी प्रजा को परेशान देखकर राजा अपनी सेना को लेकर वन में गए जहां उन्हें ऋषि अंगिरा मिले। राजा मांधाता ने ऋषि अंगिरा को अपनी समस्या सुनाई और इसका हल मांगा। जिसके बाद ऋषि अंगिरा ने राजा मांधाता को देवशयनी एकादशी करने का हल सुझाया और इसका महत्व बताया। ऋषि अंगिरा की बात मान कर राजा मांधाता ने यह व्रत किया जिसके फल स्वरूप उनके राज्य में वर्षा होने लगी और प्रजा अकाल से बच गई। यह व्रत करने वाले जातकों के सभी पाप दूर होते हैं और अनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
शालिग्राम की पूजा करना होता है शुभ
शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। इस वजह से एकादशी पर शालिग्राम पूजन भी किया जाता है। देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराकर पीले वस्त्र, पीले फूल, पीली मिठाई अर्पित की जाती है। इस पूजा-अराधना के बाद भगवान विष्णु को चार मास के लिए यन कक्ष में सुलाया जाता है। शालिग्राम की भी विधिवत पूजा करके इन्हें शयन कक्ष में विश्राम करवा सकते हैं।