- 7 मानव जीवन की संरचना है
- जीवन चक्र भी 7 से ही जुड़ा हुआ है
- विवाह संस्कार भी 7 फेरों से पूरा होता है
Saat Fere And Saat Vachan: अग्नि को साक्षी मानकर वचनबद्ध होकर सात फेरे लेकर वधु को घर लाया जाता है। लेकिन, ये सात फेरे क्यों लिए जाते हैं, इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे। सबसे पहले विवाह का अर्थ समझना होगा। विवाह को शादी या मैरिज कहना गलत है। विवाह का कोई समानार्थी शब्द नहीं है। विवाह वि+वाह अत: इसका शाब्दिक अर्थ है। विशेष रूप से उत्तरदायित्व का वहन करना। एक जिम्मेदारी को पूर्ण करना। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है, जिसे विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है। लेकिन हिन्दू धर्म में विवाह बहुत ही भली भांति सोच समझकर किए जाने वाला संस्कार है। इस संस्कार में वर और वधू सहित सभी पक्षों की सहमति लिए जाने की प्रथा है। हिन्दू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध से अधिक आत्मिक संबंध होता है। इसीलिए इस संबंध को अत्यंत पवित्र माना गया है। इसको सात जन्मों का बंधन भी कहा गया है
हिन्दू मान्यताओं में विवाह है एक महत्वपूर्ण संस्कार
सात फेरे या सप्तपदी हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। विवाह में जब तक 7 फेरे नहीं लिए जाते तब तक विवाह संस्कार पूर्ण नहीं माना जाता। ना एक फेरा कम न एक ज्यादा। इसी प्रक्रिया में पति पत्नी दोनों 7 फेरे लेते हैं। जिसे सप्तपदी भी कहा जाता है। ये सातों फेरे या पद 7 वचन के साथ लिए जाते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है, जिसे पति पत्नी जीवन भर साथ निभाने का वादा करते हैं। ये 7 फेरे ही हिन्दू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं। अग्नि के 7 फेरे लेकर और ध्रुव तारे को साक्षी मानकर दो तन मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। इसी को विवाह संस्कार कहा जाता है। यह प्रक्रिया शास्त्रों व ग्रंथों में बताई गई पद्धति के आधार पर ही सम्पन्न की जाती हैं।
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पौराणिक महत्व है 7 अंक का, इसको भाग्य का प्रतीक भी माना जाता है
ध्यान देने योग्य बात है कि भारतीय संस्कृति में 7 की संख्या मानव जीवन के लिए बहुत विशिष्ट मानी गई है। संगीत के 7 सुर, इंद्रधनुष के 7 रंग, 7 ग्रह, 7 तल, 7 समुद्र, 7 ऋषि, सप्त लोक, 7 चक्र, सूर्य के 7 घोड़े, सप्त रश्मि, सप्त धातु, सप्त पुरी, 7 तारे, सप्त, द्वीप, 7 दिन, मंदिर या मूर्ति की 7 परिक्रमा आदि का उल्लेख किया जाता रहा है। उसी तरह जीवन की 7 क्रियाएं अर्थात शौच दंत धावन स्नान ध्यान भोजन वार्ता और शयन 7 तरह के अभिवादन अर्थात माता पिता गुरु ईश्वर सूर्य अग्नि और अतिथि। सुबह सवेरे 7 पदार्थों के दर्शन गोरोचन चंदन स्वर्ण शंख मृदंग दर्पण और मणि 7 आंतरिक अशुद्धियां ईर्ष्या द्वेष क्रोध लोभ मोह घृणा और कुविचार उक्त अशुद्धियों को हटाने से मिलते हैं। ये 7 विशिष्ट लाभ जीवन में सुख शांति भय का नाश विष से रक्षा ज्ञान बल और विवेक की वृद्धि।
स्नान के 7 प्रकार मंत्र स्नान मौन स्नान अग्नि स्नान वायव्य स्नान दिव्य स्नान मसग स्नान और मानसिक स्नान शरीर में 7 धातुएं हैं। रस रक्त मांस मेद अस्थि मजा और शुक्र 7 गुण विश्वास आशा दान निग्रह धैर्य न्याय त्याग 7 पाप अभिमान लोभ क्रोध वासना ईर्ष्या आलस्य अति भोजन और 7 उपहार आत्मा के विवेक प्रज्ञा भक्ति ज्ञान शक्ति ईश्वर का भय। यही सभी ध्यान रखते हुए अग्नि के 7 फेरे लेने का प्रचलन भी है, जिसे 'सप्तपदी' कहा गया है। वैदिक और पौराणिक मान्यता में भी 7 अंक को पूर्ण माना गया है। कहते हैं कि पहले 4 फेरों का प्रचलन था। मान्यता अनुसार ये जीवन के 4 पड़ाव धर्म अर्थ काम और मोक्ष का प्रतीक था।
7 की संख्या जीवन के हर चक्र से जुड़ी हुई है
हमारे शरीर में ऊर्जा के 7 केंद्र हैं, जिन्हें चक्र कहा जाता है। ये 7 चक्र हैं। मूलाधार शरीर के प्रारंभिक बिंदु पर स्वाधिष्ठान गुदास्थान से कुछ ऊपर मणिपुर नाभि केंद्र अनाहत हृदय विशुद्ध कंठ आज्ञा ललाट दोनों नेत्रों के मध्य में और सहस्रार शीर्ष भाग में जहां शिखा केंद्र है। उक्त 7 चक्रों से जुड़े हैं हमारे 7 शरीर ये 7 शरीर हैं स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर कारण शरीर मानस शरीर आत्मिक शरीर दिव्य शरीर और ब्रह्म शरीर विवाह की सप्तपदी में उन शक्ति केंद्रों और अस्तित्व की परतों या शरीर के गहनतम रूपों तक तादात्म्य बिठाने करने का विधान रचा जाता है। विवाह करने वाले दोनों ही वर और वधू को शारीरिक मानसिक और आत्मिक रूप से एक दूसरे के प्रति समर्पण और विश्वास का भाव निर्मित किया जाता है। मनोवैज्ञानिक तौर से दोनों को ईश्वर की शपथ के साथ जीवनपर्यंत तक दोनों से साथ निभाने का वचन लिया जाता है। इसलिए विवाह की सप्तपदी में 7 वचनों का भी महत्व है।
जीवन में यह है 7 नम्बर का महत्व
सप्तपदी में पहला पग भोजन व्यवस्था के लिए, दूसरा शक्ति संचय आहार तथा संयम के लिए, तीसरा धन की प्रबंध व्यवस्था हेतु, चौथा आत्मिक सुख के लिए, पांचवां पशुधन संपदा हेतु, छठा सभी ऋतुओं में उचित रहन सहन के लिए, तथा अंतिम 7वे पग में कन्या अपने पति का अनुगमन करते हुए सदैव साथ चलने का वचन लेती है। तथा सहर्ष जीवनपर्यंत पति के प्रत्येक कार्य में सहयोग देने की प्रतिज्ञा करती है।
यही है विवाह में साथ फेरे लेने का रहस्य
मैत्री सप्तपदीन मुच्यते अर्थात एक साथ सिर्फ 7 कदम चलने मात्र से ही दो अनजान व्यक्तियों में भी मैत्री भाव उत्पन्न हो जाता है। अतः जीवन भर का संग निभाने के लिए प्रारंभिक 7 पदों की गरिमा एवं प्रधानता को स्वीकार किया गया है। 7वे पग में वर कन्या से कहता है कि हम दोनों 7 पद चलने के पश्चात परस्पर सखा बन गए हैं। मन वचन और कर्म के प्रत्येक तल पर पति पत्नी के रूप में हमारा हर कदम एकसाथ उठे, इसलिए आज अग्निदेव के समक्ष हम साथ-साथ 7 कदम रखते हैं। हम अपने गृहस्थ धर्म का जीवन पर्यंत पालन करते हुए एक दूसरे के प्रति सदैव एक निष्ठ रहें और पति पत्नी के रूप में जीवन पर्यंत हमारा यह बंधन अटूट बना रहे तथा हमारा प्यार 7 समुद्रों की भांति विशाल और गहरा है।
Spiritual (डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)