- हवन से पूर्व लाल फूल, लाल सिंदूर चढ़ाकर आरती करें
- हवन के बाद कन्या पूजा करनी चाहिए
- हवन के प्रसाद के रूप में पूड़ी-हलवा और चने बनाएं
नवरात्रि पर अष्टमी या नवमी के दिन हवन किया जाता है। जो लोग नवरात्रि के पहले और आखिरी दिन का व्रत रखते हैं वह अष्टमी को हवन कर कन्या पूजा करते हैं, लेकिन जो नौ दिन का व्रत करते हैं वह नवमी के दिन हवन कर कन्या पूजते हैं। हवन के बाद ही नवरात्रि पूजा का समापन माना जाता है। इसके बाद कन्या को भोज करना बाकी रहता है। नवरात्रि पर हवन करने से घर की ही नहीं आसपास की नकारात्मक शक्तियां भी दूर हो जाती हैं। इसलिए यदि आप नौ दिन का व्रत नहीं भी कर रहे तो हवन जरूर करें। घर पर आप खुद इस हवन को कर सकते हैं
ऐसे करें नवरात्रि पर हवन-पूजन
ऐसे करें हवन से पूर्व देवी की पूजा
देवी मां को लाल गुड़हल के फूल की माला के साथ एक लौंग की माला भी चढ़ानी चाहिए। इसके बाद धूप-दीप और नैवेद्य से मां को प्रसन्न करें। फिर देवी को लाल फूल, लाल सिंदूर चढ़ाकर आरती करें। आरती के बाद भोग लगाएं। भोग में खीर, चावल और मूंग दाल की खिचड़ी चढ़ाएं। याद रखें खिचड़ी में गाजर, पालक, मूली, गोभी और आलू भी जरूर डालें।
हवन से पूर्व तैयार करें प्रसाद
हवन के प्रसाद के रूप में पूड़ी-हलवा और चने बनाए जाते हैं। हवन के बाद यही प्रसाद कन्या को भी खिलाया जाता है।
ऐसे करें कुंड को तैयार और हवन
हवन से पहले कुंड का पंचभूत संस्कार करें। कुंड को गोबर से लीप लें। इसके बाद वेदी बना कर हवन कुंड को उस पर रख दें। दाहिने हाथ से शुद्ध जल वेदी में छिड़कें। हवन कुंड आम की लकड़ियों और जटा वाले नारियल को सजा दें और इसमें घी डाल कर अग्नि प्रज्ज्वलित करें। इसके बाद अग्नि में शहद, घी, डाल-डाल कर हवन सामग्री डालें। अब इन मंत्रों से शुद्ध घी और हवन सामग्री की आहुति दें :
- ॐ प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये न मम।
- ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदं इन्द्राय न मम।
- ॐ अग्नये स्वाहा। इदं अग्नये न मम।
- ॐ सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय न मम।
- ॐ भूः स्वाहा। इदं अग्नेय न मम।
- ॐ भुवः स्वाहा। इदं वायवे न मम।
- ॐ स्वः स्वाहा। इदं सूर्याय न मम।
- ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। इदं ब्रह्मणे न मम।
- ॐ विष्णवे स्वाहा। इदं विष्णवे न मम।
- ॐ श्रियै स्वाहा। इदं श्रियै न मम।
- ॐ षोडश मातृभ्यो स्वाहा। इदं मातृभ्यः न मम॥
इसके बाद नवग्रह के नाम से आहुति दें। गणेशजी की आहुति दें। सप्तशती या नर्वाण मंत्र से जप करें। सप्तशती में प्रत्येक मंत्र के पश्चात स्वाहा का उच्चारण करके आहुति दें।