- रोहिणी व्रत करने से जाने-अनजाने में हुआ पाप दूर होता है
- रोहिणी व्रत करने से समृद्धि, खुशी, परिवार में एकजुटता आती है
- यह व्रत 3, 5 या 7 वर्षों तक रखना होता है
27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र रोहिणी है और हर माह इस नक्षत्र के दिन रोहिणी व्रत रखा जाता है। वैसे तो ये व्रत जैन धर्म का सबसे प्रमुख व्रत कहलाता है, लेकिन इस व्रत को उन लोगों को भी जरूर करना चाहिए, जिनसे जाने-अनजाने कोई अपराध हो गया हो। यदि जाने-अनजाने शारीरिक, मानिसक या मौखिक किसी भी तरह यदि अपराध हो गया हो तो इस व्रत को करने से मनुष्य के पापकर्म घटने लगते हैं। यह व्रत एक तरह का प्राश्चित व्रत समान होता है। तो चलिए आपको इस व्रत का महत्व, कथा और पूजा विधि भी बताएं।
मार्गशीर्ष मास का रोहणी व्रत 28 दिसंबर को रखा जाएगा। हर महीने रखा जाने वाला रोहिणी व्रत जैन समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। सत्ताइस नक्षत्रों में से एक रोहिणी है और इस दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा का विधान होता है। एक बार ये व्रत शुरू किया जाता है तो इसे कम से कम 3, 5 या 7 वर्षों तक रखना होता है। इसके बाद इस व्रत का उद्यापन किया जा सकता है।
जानें, रोहिणी व्रत का महत्व
मान्यता है कि रोहिणी व्रत करने से समृद्धि, खुशी, परिवार में एकजुटता और जीवनसाथी को लंबी उम्र मिलती है। स्त्री या पुरुष जो कोई भी इस दिन रोहिणी से प्रार्थना करता है उसके जीवन से गरीबी, परेशानी और दुख खत्म हो जाता है। इस दिन जैन घरों में महिलाएं इस व्रत को बहुत ही शुद्धता और विश्वास के साथ रखती हैं।
जानें, रोहिणी व्रत का इतिहास
भगवान महावीर ने एक तपस्वी का जीवन व्यतीत किया था। शांति और अहिंसा ही उनका संदेश था। वे जैन धर्म के संस्थापक माने गए हैं। वे पथिक तपस्वियों का जीवन जीते थे और गंभीर आध्यात्मिक साधना में लगे रहते थे। रोहणी व्रत की परंपरा भी यहीं से शुरू हुई थी। गृहस्थ जीवन जीते हुए आत्मिक शुद्धता के लिए ऐसा किया जाता है।
भगवान महावीर का दृढ़ विश्वास था कि जब कोई व्यक्ति भौतिक शरीर के प्रति अपने लगाव को पार कर लेता है तो वह आत्म-साक्षात्कार कर पाता है और यही मानव जन्म की अंतिम परिणति है। जैन धर्म सांसारिक सुखों को त्यागने और खुद को आध्यात्मिक जीवन के लिए प्रतिबद्ध करने पर जोर देता है। जैन धर्म में पाखंड और दिखे की कोई जगह नहीं है। नियमित गृहस्थ जीवन में लोगों को जैन धर्म की आज्ञाओं का पालन करने और एक सामान्य जीवन जीने की अनुमति दी गई हैं। यानी आम इंसान भी तपस्वी के समान ही जीवन जीता है। अतिभोग आदि से दूर रह कर।
रोहिणी व्रत विधि
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठ जाएं और स्नान आदि कर भगवान भगवान वासुपूज्य और देवी रोहणी के नाम व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद भगवान वासुपूज्य की पांचरत्न, ताम्र या स्वर्ण प्रतिमा की स्थापना करें और प्रभु के समक्ष दो वस्त्र, फूल, फल और नैवेध्य का भोग लगाएं। रोहिणी व्रत का पालन उदिया तिथि में रोहिणी नक्षत्र के दिन से शुरू होकर अगले नक्षत्र मार्गशीर्ष तक चलता है। इस दिन गरीबों को दान देना बहुत ही उत्तम माना गया है।