- गणश जी के भक्त मोरया गोसावी से जुड़ी है गणपति बप्पा मोरया की कहानी
- गणेश जी के जयकारे में भक्त कहते हैं गणपति बप्पा मोरया
- महान भक्त मोरया गोसावी के कारण गणपति बप्पा कहलाएं मोरया
Ganesh Chaturthi 2022 Bappa Morya Story: गणेश चतुर्थी का त्योहार देशभर में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जी का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल इस दिन को गणेशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस साल 31अगस्त 2022 से लेकर 9 सितंबर 2022 यानी अनंत चतुर्थी तक देश के कई हिस्सों में गणपति उत्सव हर्षोल्लास और भक्ति भाव के साथ मनाया जाएगा। गणेश चतुर्थी के दौरान भक्त भगवान गणेश की पूजा आराधना करते हैं। इस दौरान पूरे उत्साह और जोश से गणपति बप्पा मोरिया नाम के जयकारे भी लगाते हैं।
आपने भी कई बार गणेश जी की पूजा में गणपति बप्पा मोरिया के जयकारे लगाए होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं गणेश जी के नाम के साथ बप्पा मोरिया कैसे लगा और सबसे पहली बार उन्हें मोरिया किसने कहा। जानते हैं गणेश जी के मोरिया नाम से जुड़ी रोचक कहानी के बारे में। ये कहानी 14 वीं शताब्दी के गणपति भक्त मोरया गोसावी से जुड़ी हुई है।
कैसे हुई गणेशोत्सव की शुरुआत (Ganesh Chaturthi 2022 Bappa Morya Story)
सबसे पहले जानते हैं कि गणेश चतुर्थी या गणेशोत्सव मनाने की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई। बता दें कि गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र से हुई है और इसे लोकमान्य तिलक ने सबसे पहले शुरु किया। महाराष्ट्र के बाद यह उत्सव धीरे-धीरे देशभर में मनाया जाने लगा। महाराष्ट्र में पिता बप्पा कहा जाता है। भक्तों ने गणपति को पिता के रूप मे माना और बप्पा कहकर भक्ति करने लगे। इस तरह भगवान गणेश ‘गणपति बप्पा’ कहलाएं। लेकिन गणपति बप्पा के ‘मोरया’ कहलाने की कहानी बेहद रोचक है।
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मोरया गोसावी थे भगवान गणेश के महान भक्त
कहा जाता है कि मोरया गोसावी भगवान गणेश के महान भक्त थे। यही कारण है कि उनके नाम पर बना मोरया गोसावी समाधि मंदिर आज लोगों के बीच आस्था का केंद्र है। पुणे से करीब 18 किलोमीटर दूर चिंचवाड़ में स्थित इस मंदिर की स्थापना स्वयं मोरया गोसावी ने की थी। इस मंदिर से जुड़ी कहानी बेहद रोचक है। मोरया गोसावी का जन्म 1375 ईं में हुआ था। मोरया बचपन से ही गणेश जी के भक्त थे। मोरया गोसावी बचपन से ही हर साल गणेश चतुर्थी के दिन चिंचवाड़ से पैदल चलकर 95 किलोमीटर दूर मयूरेश्वर मंदिर भगवान गणेश के दर्शन के लिए जाते थे। ये सिलसिला 117 सालों तक चलता रहा। लेकिन इसके बाद वृद्धावस्था के कारण मोरया गोसावी पैदल गणपति के मंदिर जाने में सक्षम नहीं थे। तब एक दिन गणेश जी उनके सपने में आए और कहा कल जब तुम स्नान करके कुंड से निकलोगे तो मुझे अपने समक्ष पाओगे। भक्त मोरया का सपना सच हुआ। जब मोरया गोसावी स्नान करके निकले तो उनके समक्ष गणेश जी की ठीक वैसी ही प्रतिमा थी जैसा कि उन्होंने सपने में देखा था। मोरिया ने चिंचवाड़ में उस मूर्ति की स्थापना कर दी। धीरे-धीरे इस मंदिर की लोकप्रियता बढ़ती गई और आज दूर-दूर से लोग चिंचवाड़ स्थित इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
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भक्तों के लिए एक हो गए मोरया और गणपति
इस मंदिर में लोग केवल गणपति के दर्शन के लिए ही नहीं बल्कि उनके महान भक्त मोरया गोसावी के दर्शन के लिए भी पहुंचने लगे और उनका भी आशीर्वाद लेने लगे। इस तरह से भक्तों के लि गणपति और मोरया एक हो गए। तब से ही गणपति के साथ उनके भक्त का नाम भी जोड़ा जाता है। गणेश जी के जयकारे में लोग गणपति बप्पा मोरिया कहते हैं।
मोरया भगवान गणेश के महान भक्त गोसावी मोरया हैं, जिन्हों अपनी भक्ति से भक्त और भगवना के बीच का अंतर मिटा दिया और सदा के लिए एक हो गए। आज लोग जब भी गणपति के जयकारे लगाते हैं तो गणपति के साथ मोरया नाम भी शामिल होता है।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)