- मां गंगा को धरती पर लाने के लिए राजा भागीरथ ने की थी घोर तपस्या
- मां गंगा के धरती पर आने से भागीरथ के चौसठ हजार पूर्वजों को मिली थी मुक्ति
- शिवजी की एक जटा से सात धाराओं में प्रवाहित हुईं मां गंगा
Ganga Saptami Vrat Katha 2002: सनातन धर्म में देवी-देवताओं से जुड़े कई व्रत-त्योहार पड़ते हैं, जिनका विशेष महत्व होता है। वैशाख माह की बात करें तो इस माह भी कई वत-त्योहार पड़ते हैं। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ‘गंगा सप्तमी’ होती है। इस साल गंगा सप्तमी का व्रत रविवार 08 मई 2022 को रखा जाएगा। शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन मां गंगा की उत्पत्ति हुई थी।
कहा जाता है कि इसी दिन मां गंगा स्वर्गलोक से भगवान भोलेनाथ की जटाओं में पहुंचीं थीं। यही कारण है कि भोलेनाथ के कई नामों में उनका एक नाम गंगाधर भी है, जिसका अर्थ होता है गंगा को धारण करना। आपने भोलेनाथ की सभी प्रतिमा या चित्र में देखा होगा कि वे अपने जटा में गंगा जी को धारण किए होते हैं। मां गंगा की उत्पत्ति को लेकर प्राचीन कथा है, जो काफी प्रचलित है।
गंगा सप्तमी व्रत कथा (ganga saptami vrat katha)
कहा जाता है कि पौराणिक समय में भागीरथ नाम का एक पराक्रमी राजा हुआ करता था। भागीरथ के चौसठ हजार पूर्वज महर्षि कपिल की क्रोध की ज्वाला में जलकर भस्म हो गए थे। उन्हें कभी भी मुक्ति नहीं मिली। क्योंकि राजा भागीरथ के पूर्वजों को गंगा जल से ही मुक्ति मिल सकती थी। इसके लिए मां गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करना जरूरी था। तब भागीरथ ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तपस्या की।
भागीरथ की तपस्या से मां गंगा प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा। तब भागीरथ ने मां गंगा से पृथ्वी पर आने की विनती की। भागीरथ के निवेदन पर मां गंगा धरती पर आने के लिए सहमत हो गईं। लेकिन भागीरथ ने मां गंगा से कहा कि, अगर आप स्वर्ग से पृथ्वी पर आएंगी तो पृथ्वी आपके गति और वेग को सहन नहीं कर पाएगी।
इस समस्या के समाधना के लिए तब मां गंगा ने भागीरथ से भगवान भोलेनाथ की भक्ति कर उन्हें प्रसन्न करने के लिए कहा। भगवान भोलेनाथ भागीरथ की अराधना से प्रसन्न हुए और अपने दर्शन दिए। भोलेनाथ ने जब भागीरथ को वरदान मांगने के लिए कहा तो, भागीरथ ने अपनी समस्या बताई। भागीरथ की समस्या सुन भोलेनाथ ने समाधान निकाला और मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया।
यह दिन वैशाख माह की शुक्ल सप्तमी का दिन था। भगवान शिव ने अपनी जटा की एक लट खोल दी, जिससे मां गंगा सात धाराओं में पृथ्वी पर प्रवाहित हो गईं। इस तरह से भागीरथ मां गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल हो गए। इसके बाद राजा भागीरथ के चौसठ हजार पूर्वजों के आत्मा को शांति मिली। इसलिए गंगा स्नान को पवित्र माना जाता है और गंगा में डुबली लगाते ही व्यक्ति के सारे पाप दूर होते हैं और इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)