Geeta Gyan In Lock down Part 9: गीता:अध्याय 14 श्लोक 26: कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण मन कई बार विचलित होता है। ऐसे में गीता में इन परिस्थितयों में से ब्रह्म के स्तर तक पहुंचने का मार्ग बताया है।
मां च योअव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते।
स गुणानसमतीतयैतान्ब्रहभूयाय कल्पते।।
भावार्थ- भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन जो व्यक्ति सभी परिस्थितियों में बिना विचलित हुए हमारी पूर्ण भक्ति में प्रवृत्त होता है वह प्रकृति के सभी रहस्यों व विशेषताओं को लांघ कर अर्थात ब्रम्ह पद तक ऊपर उठकर ब्रम्ह के स्तर तक पहुंच जाता है।
दार्शनिक व आध्यात्मिक व्याख्या - इस श्लोक का अर्थ जानने के पहले अर्जुन का उस समय का प्रश्न जानना आवश्यक है। अर्जुन भगवान से प्रश्न करते हैं कि दिव्य स्थिति प्राप्त करने का साधन क्या है? इस प्रश्न का उत्तर ही इस श्लोक में भगवान ने दिया है।
सामान्य अर्थ में ये जानें कि जिस व्यक्ति के ऊपर किसी भी परिस्थिति का प्रभाव मत पड़े यानि स्थितिप्रज्ञता। सुख दुख, हानि लाभ, जीवन मरण व हर्ष विषाद सब स्थितियों में जो भक्त अविचलित रहते हुए भगवान की सत्ता में पूर्ण विश्वास करते हुए हर पल उनकी भक्ति में लीन रहता है वह ब्रम्ह के स्तर तक पहुँच जाता है।
इस श्लोक के दर्शन में भक्तियोग है। भक्तियोग में निष्काम कर्म व अविरल भक्ति आती है। आप राम, कृष्ण, शिव जिसकी भी भक्ति करते हैं उसकी भक्ति में किसी भी परिस्थिति का प्रभाव न पड़े। ऐसे सामाजिक कार्य जिससे मानव सहित समस्त जीवों का कल्याण हो ऐसा कार्य भी भगवान का ही कार्य माना जाता है।
दान, तीर्थ परोपकार, दया व लोक कल्याण की भावना ये सब भक्तियोग में आते हैं क्योंकि ये सभी सेवा कार्य है जो परमात्मा की प्रिय है। सबके अपने अपने इष्ट हैं। बहुत लोग राम की पूजा करते हैं। बहुत शिव पूजा में समर्पित हैं। ये सब पूजाएं बराबर हैं। आपका जो भी ईष्ट है वह सब एक ही परमपिता परमात्मा का ही एक स्वरूप है।
अब तो सभी बातें स्पष्ट हो गयीं। अब जो बिना विचलित हुए सदैव अपने भगवान की पूजा में समर्पित रहेगा वो प्रकृति के सभी विशेषताओं को लांघ जाएगा, इसका अर्थ जानना है। सीधा मतलब प्रकृति की तरह सुंदर हो जाना।
नदी सबको जल देती है। सूर्य सबको प्रकाश देते हैं। वृक्ष सबको फल देते हैं। सीधा सरल मतलब है कि आपकी दृष्टि से विभेद समाप्त हो जाय। ऐसी स्थिति में आप ब्रम्ह अर्थात परम पिता परमात्मा के स्तर तक पहुँच जाते हैं।
वर्तमान समय मे इस श्लोक की प्रासंगिकता
सुख दुख प्रत्येक परिस्थिति में जो व्यक्ति अविचलित रहता है तथा भगवान को सर्वोच्च सत्ता मानकर उनकी पूजा व सेवा में लीन रहता है वह भगवान के स्तर तक पहुंच जाता है अर्थात अब उसका स्तर भौतिक जगत से आध्यात्मिक हो चुका है। वो भय के वातावरण में भी भगवान की भक्ति में लीन सब कुछ उसको सौंप कर मस्त है क्योंकि वो ब्रम्ह के स्तर तक पहुंच चुका है।