guru purnima par suvichar Guru : सनातम धर्म में गुरु पूर्णिमा का खास महत्व होता है। इस दिन गुरुओं की पूजा करने और उनका सम्मान करने की परंपरा है। इस साल गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को पड़ रही है। इस मौके पर आप गुरु पूर्णिमा के सुविचार, गुरु पूर्णिमा पर आधारित कोट्स और श्लोक शुभकामना देने के दौर पर भेज सकते है।
guru purnima par suvichar
ध्यान मूला ध्यान मुलम गूर मुर्तिह; पूजा मूल गुरु पदम;
मंत्र मुगल गुरु वक्म; मोक्ष मुलम गुरु कही गुरु की तरह है”
यह एक अनोखी यात्रा है जहा गुरु आपको ले जाता है
दृश्य से अदृश्य तक, सामग्री से दिव्य तक,
अल्पकालिक से अनन्त तक मेरे गुरु होने के लिए
“गुरुवर आपके उपकार का,
कैसे चुकाऊ मै ऋण ?
लाख कीमती धन भला..
गुरु है मेरा अनमोल…
गुरु पूर्णिमा की बधाई“
समय भी सिखाता है और गुरु भी!
पर दोनों मे फर्क सिर्फ इतना है
कि गुरु लिखाकर परीक्षा लेता है;
और समय परीक्षा लेकर सिखाता है!
अक्षर ज्ञान ही नही, गुरु ने दिया हमें जीवन ज्ञान,
गुरुमत्र को धर ह्रदय में, हो जाओ भव् सागर से पार!
हैप्पी गुरु पूर्णिमा!
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े का के लागूं पायं.
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो बताय..
शुभ गुरु पूर्णिमा
गुरुवर ही गीत हैं
गुरुवर ही सगीत हैं
गुरुवर ही लहर हैं
गुरुवर ही भीतर हैं
गुरुवर ही बाहर हैं
गुरुवर ही बहार हैं
दिया ज्ञान का भण्डार हमको
किया भविष्य के लिए तैयार हमको
है कृतज्ञ उन गुरुओ के हम
जो किया ऋणी अपार हमको
Guru Purnima की बधाई
जिसके प्रति दिल में श्रद्धा होती है, जिसकी डाट मे भी एक अनोखा ज्ञान होता है,
जन्म देता है कई बड़ी हस्तियों को, वो गुरु तो ईश्वर से भी महान होता है.
गुरु एक आकांक्षा है,
गुरु एक प्रेरणा है,
गुरु सब कुछ है।
गुरु का आशीर्वाद आप पर हमेशा बरसता रहे।
हैप्पी गुरु पूर्णिमा 2021
आज का दिन आभारी होने का दिन है,
नम्र बनो और मुस्कुराओ,
मेरे जीवन को सार्थक बनाने के लिए धन्यवाद।
गुरु की महिमा है अगम, गाकर तरता शिष्य।
गुरु कल का अनुमान कर, गढ़ता आज भविष्य।।
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं
गुरु बिन ज्ञान नहीं
ज्ञान बिन आत्मा नहीं
ध्यान, ज्ञान, धैर्य और कर्म
सब गुरु की ही देन हैं
शुभ गुरु पूर्णिमा
विद्यालय है मंदिर मेरा, गुरु मेरे भगवान् हैं,
हमारे हृदय में नित उनके लिए सम्मान है।
Guru Purnima Shlok
दृष्टान्तो नैव दृष्टस्त्रिभुवनजठरे सद्गुरोर्ज्ञानदातुः स्पर्शश्चेत्तत्र कलप्यः स नयति यदहो स्वहृतामश्मसारम् । न स्पर्शत्वं तथापि श्रितचरगुणयुगे सद्गुरुः स्वीयशिष्ये स्वीयं साम्यं विधते भवति निरुपमस्तेवालौकिकोऽपि ॥
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
खण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा । शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
पूर्णे तटाके तृषितः सदैव भूतेपि गेहे क्षुधितः स मूढः । कल्पद्रुमे सत्यपि वै दरिद्रः गुर्वादियोगेऽपि हि यः प्रमादी ॥
योगीन्द्रः श्रुतिपारगः समरसाम्भोधौ निमग्नः सदा शान्ति क्षान्ति नितान्त दान्ति निपुणो धर्मैक निष्ठारतः । शिष्याणां शुभचित्त शुद्धिजनकः संसर्ग मात्रेण यः सोऽन्यांस्तारयति स्वयं च तरति स्वार्थं विना सद्गुरुः ॥
नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ।
गुरोस्तु चक्षुर्विषये न यथेष्टासनो भवेत्।।
किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्।।