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GuruPurab 2002 : गुरु नानक जी के जीवनकाल में हुए कई रोचक प्रसंग, जानें उनसे जुड़े कुछ खास गुरुद्वारे

Updated Nov 30, 2020 | 10:10 IST

गुरु नानक देव की जन्म जयंती इस बार 30 नवंबर को है। यह कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। गुरु नानक देव जी के जीवन के साथ अनूठे प्रसंग जुड़े हैं। यहां जानें उनसे जुड़े कुछ गुरुद्वारों के बारे में।

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Guru Nanak Dev Ji
मुख्य बातें
  • स‍िखों के पहले गुरु थे गुरु नानक देव जी
  • समाज में द‍िया एकता और भाईचारे का संदेश
  • उनके जीवन प्रसंगों से जुड़े कुछ गुरुद्वारे प्रस‍िद्ध हैं

गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में कार्तिक मास की पूर्णिमा को तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। भारत पाकिस्तान के विभाजन के बाद यह स्थान अब पाकिस्तान में स्थित है जिसे अब ननकाना साहब के नाम से जाना जाता है। हर वर्ष गुरु नानक देव जी के जन्म जयंती को गुरु पर्व के रूप में पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सिखों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व होता है। गुरु नानक जयंती को गुरु पर्व और प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है। 

गुरु नानक देव सिखों के पहले गुरु थे। नानक साहब ने अपने अनुयाइयों के साथ कई देशों की यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने सामाजिक एकता और सिख धर्म का प्रचार प्रसार कर एक नए युग की शुरुआत की। सामाजिक कुरीतियों का विरोध कर उन्होंने लोगों को एक नई सोच और दिशा दी। 

आइए गुरु पर्व के अवसर पर जानते हैं गुरु नानक जी के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण गुरुद्वारों के बारे में

गुरुद्वारा हट साहब

कपूरथला में स्थित इस गुरुद्वारे को लेकर बड़ी मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि यहीं पर गुरु नानक जी को तेरा शब्द के जरिए अपनी मंजिल का आभास हुआ था। यहां पर उन्होंने सुल्तानपुर के नवाब के यहां पर नौकरी की थी। यह नौकरी उनके बहनोई जयराम की मदद से मिली थी। इस गुरुद्वारे को लेकर उनके श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई हैं। 

गुरुद्वारा गुरुबाग

इस गुरुद्वारे को लेकर गुरु नानक साहब के अनुयाइयों की बड़ी मान्यताएं हैं। कहा जाता है कपूरथला स्थित इस गुरुद्वारे में गुरुनानक साहब रहते थे। बाद में उनके घर को गुरुद्वारे के रूप में बदल दिया गया। आपको बता दें गुरु नानक साहब के दो बेटों बाबा श्रारामचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म इसी घर में हुआ था। 

गुरुद्वारा बेर साहिब 

पंजाब के कपूरथला में सुल्तानपुर लोधी तहसील में स्थित गुरुद्वारा बेर साहिब को सिखों का एक पवित्र धार्मिक स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि गुरु नानक जी ने अपने जीवन के 14 वर्ष यहां पर बिताए थे। इस गुरु द्वारे का नाम यहां पर लगे बेर के पेड़ के आधार पर रखा गया है। गुरुद्वारे को लेकर मान्यता है कि एक बार गुरु नानक साहब यहीं पर अपने गुरु मर्दाना साहब के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे और स्नान के लिए डुबकी लगाते समय एक अलौकिक प्रकाश हुआ जिसके बाद वह तीन दिन के लिए इसी प्रकाश में आलोप हो गए। इस दौरान उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।

गुरुद्वारा कोठी साहब

यह गुरु द्वारा पहले जेल हुआ करता था। जहां पर गुरु नानाक देव जी को नवाब दौलत खान द्वारा खाते में हेरा फेरी के चलते बंद रखा गया था। हालांकि बाद में दौलतखान ने अपनी गलती का अहसास होने के बाद उन्होंने गुरुनानक साहब से माफी मांगी थी। साथ ही नवाब ने उन्हें सुल्तानपुर का प्रधान घोषित करने को कहा। लेकिन नानक साहब ने इससे इंकार कर दिया था।

गुरुद्वारा कंध साहब 

पंजाब के गुरदासपुर में स्थित गुरुद्वारा कंध साहब को लेकर बड़ी मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि यहां पर गुरुनानक साहब का विवाह उनकी पत्नी सुलक्षणा के साथ हुआ था। हर ज्येष्ठ माह की 24 तारीख को यहा पर उनके वैवाहिक वर्षगांठ को बड़े धूम धाम मनाया जाता है।

गुरुद्वारा अचल साहिब

देश दुनिया में सिख धर्म का प्रचार प्रसार और सामाजिक एकता को लेकर यात्रा के दौरान गुरुनानक साहब यहां पर रुके थे। तभी से इसे गुरुद्वारा अचल साहिब के नाम जाना जाता है। यह गुरदासपुर में स्थित है। यहीं पर नाथपंथियों के गुरु भांगर नाथ के साथ गुरुनानक जी का धर्म को लेकर वाद-विवाद हुआ था। नानक जी ने उन्हें बताया था कि ईश्वर को प्राप्त करने मार्ग केवल प्रेम है।

गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक 

रावी नदी के किनारे बने इस गुरुद्वारे में नानक जी धार्मिक यात्रा के दौरान करीब 12 साल तक रहे थे। गुरदासपुर के इस गुरुद्वारे में आप उनके वस्त्रों के कई चीजों को देख सकता हैं। आपको बता दें इस गुरुद्वारे में उनके द्वारा मक्का से लाए गए वस्त्र रखे गए हैं। 

गुरुद्वारा करतारपुर साहिब

पाकिस्तान के नोरवाल जिले में स्थित इस गुरुद्वारे का इतिहास 500 साल पुराना है। मान्यता है कि 1522 में गुरु नानक साहब ने इसकी स्थापना की थी। उन्होंने अपने जीवन के आखिरी साल यहीं बिताए थे। गुरु नानक साहब यहां पर पंचतत्‍व में विलीन हो गए थे। 
 

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