- इंदिरा एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है
- इंदिरा एकादशी व्रत करने से पितरों को मोक्ष मिलता है
- इस एकादशी व्रत का परायण सूर्योदय के बाद किया जाता है
Indira Ekadashi Vrat Katha: हिदू शास्त्र के अनुसार में हर एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करने से व्यक्ति के सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण हो जाती है। हिंदू पंचांग में पितृपक्ष में पढ़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी का नाम दिया गया है। इस साल यह एकादशी 2 अक्टूबर दिन शनिवार (Indira Ekadashi 2021 date and day) को मनाई जाएगी। ऐसी मान्यता हैं कि इस व्रत को करने से ना केवल व्यक्ति की इच्छाएं पूर्ण होती है बल्कि पित्रों को मोक्ष और उनकी आत्माओं को शांति भी मिलती हैं। यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। एकादशी व्रत का पारायण हमेशा सूर्योदय के बाद ही किया जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु के भक्त पीला वस्त्र पहन के सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के साथ ही पूजा प्रारंभ करते हैं। ऐसी मान्यता है इस व्रत की कथा को पढ़ने या सुन लेने से किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। यहां आप इस व्रत की संपूर्ण कथा देखकर पढ़ सकते हैं।
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हिंदू शास्त्र के अनुसार सतयुग के समय में इंद्रसेन नाम का एक राजा हुआ करता था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह राजा बेहद धर्मपरायण था। एक दिन देवर्षि नारद जी इंद्रसेन की राज सभा में पहुंचे। तब राजा ने नारद जी का आदर सत्कार करते हुए उनसे वहां आने का कारण पूछा।
तब नारद जी ने अपने आने का कारण बताते हुए राजा से कहा, कि वे अभी यमलोग गए थे, जहां उनकी मुलाकात राजा इंद्रसेन के पिता से हुई। राजा के पिता ने बातचीत के दौरान में बताया कि वह अपने जीवन काल में एकादशी का व्रत बीच में ही छोड़ दिया था। जिसके कारण उन्हें अभी भी यमलोक में रहना पड़ रहा है। अगर मेरा पुत्र अश्विन मास की एकादशी को भगवान विष्णु की व्रत करें, तो शायद मुझे यम यमलोक की यातना से मुक्ति मिल सकती है।
इस बात को सुनकर राजा इंद्रसेन ने नारद जी से व्रत करने का विधि पूछी। तब नारद जी ने राजा को व्रत करने की पूरी विधि बताई। उसके बाद राजा ने विधि विधान से व्रत का संकल्प लेकर व्रत को करना शुरू कर दिया। व्रत को विधि विधान से करने के बाद राजा ने ब्राह्मण को भोजन कराया और साथ में गौ दान भी किया। तब भगवान विष्णु ने खुश होकर राजा के पिता को यमलोक से मुक्त कर दिया। बाद में राजा के पिता बैकुंठ लोक को पधार गए। हिंदू शास्त्र के अनुसार इसी वजह से इस व्रत का नाम इंदिरा एकादशी पर गया।