- केंद्रीय परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने देशवासियों को दिया बड़ा तोहफा।
- दिसंबर 2023 से भारतीय नागरिक चीन या नेपाल से गुजरे बिना कर सकेंगे मानसरोवर की यात्रा।
- अब 23 से 25 दिनों में नहीं बल्कि 7 दिन में पूरी हो सकेगी कैलाश मानसरोवर की यात्रा।
Kailash Mansarover New Route: अब भारतीय नागरिक चीन या नेपाल से गुजरे बिना कैलाश मानसरोवर की यात्रा पूरी कर सकेंगे। जी हां यह सुनकर आप चकित हो उठे होंगे, लेकिन आपको बता दें मंगलवार को संसदीय सत्र के दौरान केंद्रीय परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि कैलाश मानसरोवर जाने के लिए अब भारतीय तीर्थ यात्रियों को चीन या नेपाल से होकर नहीं जाना होगा, क्योंकि उत्तराखंड से एक नया राजमार्ग जल्द ही शुरू होने वाला है। उन्होंने बताया कि दिसंबर 2023 तक भारतीय नागरिक चीन या नेपाल से गुजरे बिना मानसरोवर की (Kailash Mansarover New Route) यात्रा कर सकेंगे।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 2024 लोकसभा चुनाव तक इस रूट को पूरा कर लिया जाएगा। इससे कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वालों का ना केवल समय बचेगा बल्कि यात्रियों को एक आसान रास्ता भी मुहैया होगा। गडकरी ने एक साल में इस रूट को चालू करने का दावा कर विपक्षी पार्टियों में गुदगुदाहट पैदा कर दी है।
इस समय मानसरोवर का रास्ता
बता दें वर्तमान में विदेश मंत्रालय तीन अलग अलग राजमार्गों लिपुलेख दर्रा (उत्तराखण्ड), नाथू ला दर्रा (सिक्किम) और काठमांडू के रास्ते कैलाश मानसरोवर की यात्रा का आयोजन करता है। इन तीनों रूटों को काफी खतरनाक माना जाता है। तथा इसमें करीब 23 से 25 दिन का समय लगता है। लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर पहुंचने में यात्रियों को बर्फीले मौसम का सामना करते हुए 19500 फीट तक की ऊंचाई पर लगभग 90 किलोमीटर की ट्रैकिंग करनी पड़ती है। हालांकि उत्तराखंड के पिथौरगढ़ से होकर मानसरोवर (pithoragarh to mansarover road) जाने वाला नया राजमार्ग तीर्थ यात्रियों को उनकी कठिन यात्रा से बचाएगा और तीन से चार हफ्तों के बजाए यात्री 1 हफ्ते में मानसरोवर पहुंच सकेंगे।
नये राजमरार्ग के बारे में संपूर्ण जानकारी
तीर्थ यात्रियों के लिए अब कैलाश मानसरोवर पहुंचना बेहद आसान होने वाला है। उत्तराखंड के पिथौरगढ़ से कैलाश मानसरोवर के लिए नये रूट का निर्माण काफी तेजी से जारी है। इस नए राजमार्ग में तीन खंड शामिल हैं। पहला खंड पिथौरगढ़ से तवाघाट (pithoragarh to tawaghat) तक का 107.6 किलोमीटर है, दूसरा तवाघाट से घटियाबाढ़ तक का 19.5 किलोमीटर सिंगल लेन है और तीसरा घटियाबगढ़ से लिपुलेख दर्रे यानी चीन सीमा तक है। तीसरा करीब 80 किलोमीटर तक है और इसे केवल पैदल य किया जा सकता है।
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा तवाघाट से घटियाबागढ़ तक के सिंगल लेन को डबल लेन में परिवर्तित किया जा रहा है। वहीं सैन्य संगठन धारचूला (उत्तराखंड) से लिपुलेख (चीन सीमा) पर कनेक्टिविटी पर काम कर रहे हैं। बता दें सड़क का उद्घाटन मई 2020 में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और सीडीएस विपिन सिंह रावत ने किया था।
-5 डिग्री सेल्सियस में पहुंचाई गई थी मशीन
मंगलवार को संसदीय सत्र के दौरान नितिन गडकरी ने बताया कि कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सरकारर की ओर से हरसंभव मदद की जा रही है। उन्होंने संसद के माननीय सदस्यों को इससे अवगत कराते हुए बताया कि विशेष हेलिकॉप्टर और लड़ाकू विमान के जरिए -5 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले इलाके में मशीन पहुंचाई जा रही है। तथा 85 फीसदी कार्य पूरा हो गया है। एक बार निर्माण कार्य पूरा होने के बाद यात्री करीब 90 किलोमीटक यात्रा से बच सकेंगे और अपने निजी वाहनों से चीन सीमा तक जा सकेंगे। तथा पिथौरगढ़ परियोजना पूरी होने के बाद तीर्थयात्री उच्च जोखिम और उंचाई वाले कठिन ट्रैक से बच सकेंगे और यात्रा की अवधि भी लगभग दो सप्ताह कम हो जाएगी।
मानसरोवर की यात्रा हुई आसान
वर्तमान में कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने के लिए सिक्किम या नेपाल के राजमार्ग से होते हुए करीब तीन सप्ताह का समय लगता है। यहां पहुंचने के लिए नागरिक मात्र 20 प्रतिशत भारतीय सड़कों की यात्रा करते हैं, जबकि 80 प्रतिशत चीन की भूमि यात्रा करते हैं। वहीं नया राजमार्ग बनने के बाद भक्त भारतीय सड़कों पर 84 प्रतिशत यात्रा करेंगे और चीन पर मात्र 16 प्रतिशत यात्रा करेंगे। साथ ही भोल बाबा के भक्तों के लिए कैलाश मानसरोवर पहुंचना बेहद आसान हो जाएगा।
हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल
तिब्बत के पश्चिमी भाग में स्थित कैलाश मानसरोवर हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। सनातन धर्म के लोगों के लिए कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है, मान्यता है कि भोलेनाथ आज भी यहां वास करते हैं।