- करवा चौथ की कथा में छुपा है इस व्रत का महत्व
- भाईयों ने बहन को दिखा दिया था झूठा चांद
- व्रत खंडित होने से गणपति भगवान हो गए थे नाराज
पति की लंबी उम्र के लिए आज सुहागिने निर्जला व्रत कर रही हैं। शाम के समय देवी पार्वती और शिव परिवार की पूजा होगी और पूजा के बाद ही कथा सुनने का विधान होता है। मान्यता है कि यदि इस दिन कथा का श्रवण न किया जाए तो व्रत अधूरा होता है। कोराना के कारण यदि सामूहिक पूजा में आप शामिल नहीं हो रहीं तो कथा आप स्वयं या अपने पति के जरिये सुन सकती हैं। कथा का वाचन करने वाले को भी इसका पुण्यलाभ मिलता है। करवा चौथ की कथा में ही इस व्रत के महत्व को भी बताया गया है। तो आइए जानें कि इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है।
पूजा के बाद इस कथा को सुनें (Karwa Chauth vrat ki kahani in hindi)
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। साहूकार अपनी बहन को बहुत प्यार करते थे। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सेठ सातों लड़कों की पत्नियों और उसकी बेटी ने अपने पति के लिए करवा चौथ का निर्जला व्रत रखा। साहूकार के बेटे जब रात में भोजन करने बैठे तो सबने अपनी बहन को भी खाने को कहा लेकिन बहन वीरावती ने बताया कि वह चांद निकलने तक नहीं खा सकती है। बहन को भूख से बेहाल देख साहूकार के बेटों ने एक अग्नि जला कर नकली चांद पेड़ पर दिखा दिया। बहन ने सोचा चांद निकल आया और वह चांद को अर्घ्य देकर भोजन करने बैठी,लेकिन भाभियों ने उसे बताया कि चांद नहीं निकला है।
उनके भाई नकली चांद अग्नि से बना कर उसे दिखा रहे हैं, लेकिन वह उनकी बात नहीं मानी और खाने के लिए बैठ गई। व्रत पूरा होने से पहले ही अन्न ग्रहण करने बैठने से विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। वीरावती जब भोजन करने बैठी तो उसे उसी समय कुछ न कुछ अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दमसरें में उसे छींक आ गई और तीसरे कौर को जब खाने गई तो उसे सूचना मिली की उसका पति अचानक से मृत्यु को प्राप्त हो गया।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती का विलाप इतना तेज हुआ कि वह तीनों लोको तक पहुंच गया। अपनी इस भूल के लिए वह खुद को दोषी मानने लगी। वीरावती का विलाप सुनकर इन्द्र की पत्नी है इंद्राणी भी वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची और बताया कि उसके पति की मृत्यु क्यों हुई। वीरावती पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि चन्द्रमा को अर्घ्य दिए बिना उसने व्रत तोड़ दिया था इसलिए वह हर माह की चौथ पर ये व्रत करे और करवाचौथ पर व्रत को पूर्ण करें। वीरावती ने ऐसा ही किया और उसे उसका पति फिर से जीवित मिल गया।
तो इस कथा को सुनने के बाद चंद्रोदय पर चांद को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण माना जाता है।