- इंद्रदेव को अपना शील देने पर कंगाल हो गए प्रह्लाद
- तपस्या और निष्ठा से प्रह्लाद को मिल गया इंद्रदेव का पद
- सच्चे विष्णुभक्त थे असुरराज प्रह्लाद
Story of Asurraj Prahlada and indra dev: हिंदू धर्म में 33 करोड़ (कोटि) देवी-देवताएं हैं। सभी देवी-देवता का अपना अलग महत्व होता है और सभी देवताओं से जुड़ी पौराणिक और धार्मिक कथाएं होती है। इसी तरह पुराणों में असुरराज प्रह्लाद और देवराज इंद्र से जुड़ी एक कथा है, जो काफी प्रचलित है। असुरराज प्रह्लाद और देवराज इंद्र से जुड़ी एक प्राचीन कथा के अनुसार, प्रह्लाद खूब तपस्वी और दानी स्वाभाव के थे। अपने इसी स्वभाव से प्रह्लाद ने देवताओं के राजा देवराज इंद्र का स्थान भी ले लिया और स्वंय राजा बन गए। इसके बाद इंद्रदेव व्याकुल होकर सहायता के लिए देवगुरु बृहस्पति के शरण में पहुंचे।
उन्होंने गुरु बृहस्पति को अपनी समस्या बताई और इसे हल करने की विनती की। गुरु बृहस्पति ने कहा कि, प्रह्लाद को बल से पराजित नहीं किया जा सकता है। लेकिन उसे उसके स्वभाव की मदद से छल से ही हराया जा सकता है। इस पर इंद्र ने गुरु बृहस्पति से कहा, ये कैसे संभव होगा। गुरु बृहस्पति ने कहा कि, प्रह्लाद दयालु स्वाभाव का है और उसके द्वार से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाता। उसकी इसी दयालुता भाव से उसे हराया जा सकता है।
बृहस्पति ने इंद्र से कहा कि तुम भिक्षुक की वेशभूषा धारण कर प्रह्लाद के पास जाओ और प्रह्लाद से भिक्षा में उसका शील मांगना। गुरु बृहस्पति के बताए अनुसार, जब कतार में इंद्रदेव के भिक्षा मांगने की बारी आई तो उन्होंने प्रह्लाद से उनका शील मांगा। प्रह्लाद ने पूछा, मेरे शील यानी चरित्र से तुम्हारा कार्य हो जाएगा। भिक्षुक ने हां में जवाब दिया। प्रह्लाद ने भिक्षुक का वेश धारण किए इंद्र को अपना चरित्र दान में दे दिया। कुछ समय बाद प्रह्लाद के शरीर से एक प्रकाशमय आकृति निकली और इंद्र के शरीर में समा गई। प्रह्लाद के पूछने पर उसने कहा मैं आपका शौर्य हूं। चरित्र के बिना मेरा आपके शरीर में क्या काम।
प्रह्लाद को कुछ समझने का समय मिलता, इस बीच एक और आकृति उनके शरीर से निकलकर भिक्षुक (इंद्र) के शरीर में समा गई। प्रह्लाद के पूछने पर उसने कहा मैं वैभव हूं, चरित्र और शौर्य के बिना मेरा आपके शरीर में क्या कां। इस तरह से एक-एक कर प्रह्लाद के शरीर से सभी ज्योतिपुंज निकलकर इंद्र के शरीर में चले गए। आखिर में प्रह्लाद के शरीर से एक और प्रकाशमय आकृति निकली जोकि राजश्री थी। इस तरह के एक-एक कर असुरराज प्रह्लाद से देवराज इंद्र ने उनका सबकुछ छीन लिया।
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)