- श्रीकृष्ण-राधा की सबसे प्रिय गोपी थीं देवी ललिता
- भाद्र शुक्ल षष्ठी को रखा जाता है इनका व्रत
- जानें, ललिता षष्ठी की पूजन विधि
Lalita Shashti 2022 Pooja: हर साल भाद्रपद शुक्ल की षष्ठी को ललिता षष्ठी का त्योहार मनाया जाता है। कोई इन्हें षोडशी, त्रिपुरा और सुंदरी के नाम से बुलाता है तो कोई माता पार्वती का अवतार कहता है। देवी ललिता गौर वर्ण से हैं और कमल पर विराजमान रहती हैं। ललिता षष्ठी के दिन देवी की पूजा-अर्चना करने से हर प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति की जा सकती है। धर्म शास्त्रों में जिक्र है कि ललिता भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की सबसे प्रिय गोपी थीं। देवी ललिता को सच्चे प्रेम और मित्रता का प्रतीक भी माना जाता है। भाद्र शुक्ल षष्ठी पर इन्हीं की पूजा-उपासना की जाती है.
जन्माष्टमी के 14 दिन बाद आती है ललिता षष्ठी
हिंदू पंचांग के अनुसार, ललिता षष्ठी का त्योहार श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 14 दिन बाद आता है। यह दिन राधा-कृष्ण की प्रिय गोपी ललिता की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन ललिता देवी के साथ श्रीकृष्ण और राधा की पूजा बहुत फलदायी होती है। यह व्रत करने से दांपत्य जीवन में चल रही पेरशानियों का अंत हो जाता है।
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श्रीकृष्ण-राधा की आठ प्रिय गोपियां
ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण और राधा की कुल मिलाकर आठ प्रिय गोपियां थीं, जिनमें ललिता का दर्जा सबसे ऊपर था। श्रीकृष्ण-राधा की इन गोपियों को अष्टसखियों के नाम से भी जाना जाता है। इनमें ललिता के अलावा, श्री तुंगविद्या, इंदुलेखा, रंगादेवी, विशाख, चित्रलेखा, चम्पकलता और सुदेवी के नाम शामिल हैं।
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ललिता षष्ठी पर कैसे करें पूजा?
ललिता षष्ठी पर सवेरे-सवेरे स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। इसके बाद ललिता षष्ठी के व्रत का संकल्प लें और मंदिर जाकर माता की पूजा करें। माता के समक्ष घी का दीपक जलाएं और इन्हें गुलाब के फूल अर्पित करें। फल और मिठाई का भोग लगाने से माता बहुत प्रसन्न होती है। भोग के बाद माता की आरती उतारें और सुखमय जीवन की प्रार्थना करें।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)