- महेश नवमी भगवान शंकर से जुड़ा एक पर्व है
- इस पर्व को माहेश्वरी समाज धूमधाम से मनाता है
- इस बार इस पर्व को 31 मई को मनाया जाएगा
नई दिल्ली: महेश नवमी माहेश्वरी समाज का प्रमुख पर्व है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है और इस बार यह पर्व 31 मई को मनाया जाएगा । पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक माहेश्वरी समाज की उत्पति भगवान शिव के वरदान देने से इसी दिन मानी जाती है। महेश नवमी के दिन भगवान शंकर व और मां पार्वती की आराधना की जाती है। गौर हो कि शास्त्रों में भगवान शंकर का एक नाम महेश भी है इसलिए यह पर्व महेश नवमी के रुप में मनाया जाता है। इस पर्व में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को उनकी पूजा की जाती है इसलिए इसका नाम महेश नवमी है।
कब है महेश नवमी
महेश नवमी 31 मई को है। यह तिथि 30 मई की शाम 7 बजकर 55 मिनट से प्रारंभ होकर 31 मई शाम पांच बजकर 30 मिनट तक रहेगी।
क्या है महत्व
शास्त्रों में माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान शंकर के वरदान स्वरूप मानी गई है जिसका उत्पत्ति दिवस ज्येष्ठ शुक्ल नवमी तिथि को माना जाता है। माहेश्वरी समाज महेश नवमी का पर्व धूमधाम के साथ मनाता है। इस दिन भगवान शंकर और मां पार्वती की विशेष आराधना की जाती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। शिकार करने के दौरान ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया। तब इस दिन भगवान शिव ने उन्हें शाप से मुक्त कर उनके पूर्वजों की रक्षा की और उन्हें अहिंसा का मार्ग बतलाया था। महादेव यानी भोलेनाथ ने इस समाज को अपना नाम भी दिया इसलिए यह समुदाय 'माहेश्वरी' नाम से जाना गया। मान्यताओं के मुताबिक भगवान शंकर की अनुमति से ही माहेश्वरी समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य समाज को अपनाया और तभी से माहेश्वरी समाज की पहचान व्यापारिक गतिविधियों के रुप में होने लगी।
पूजा विधि
- इस दिन माहेश्वरी समाज भगवान शंकर की अराधना और मां पार्वती की अराधना करता है।
- इस दिन भगवान शंकर का जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक किया जाता है।
- भगवान शकंर को गंगाजल, पुष्प, बेल पत्र आदि चढ़ाया जाता है।
- इस दिन शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है।
- भगवान शिव की अराधना में डमरू बजाया जाता है।
- मां-पावर्ती और भगवान शंकर दोनों की विधिवत अराधना की जाती है।