- हर माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है दुर्गा अष्टमी
- दुर्गा अष्टमी की तिथि मां दुर्गा को समर्पित है, इस दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है
- दुर्गा अष्टमी पर श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करने से मानसिक शांति की प्राप्ति होती है
सनातन धर्म के विद्वानों का मानना है कि, हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को दुर्गा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है और मंत्रों का जाप किया जाता है। इस वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 22 मार्च को पड़ रही है जिस दिन सोमवार है। दुर्गा अष्टमी पर मां दुर्गा की पूजा आराधना करने से स्वास्थ्य के साथ धन और समृद्धि की भी प्राप्ति होती है। दुर्गा अष्टमी पर दुर्गा चालीसा का पाठ करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है साथ में सभी कष्ट दूर होते हैं।
श्री दुर्गा चालीसा हिंदी में
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दु:ख हरनी।।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी।।
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटी विकराला।।
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे।।
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना।।
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला।।
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।।
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।
धरयो रूप नरसिंह को अंबा।
परगट भई फाड़कर खम्बा।।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं।।
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा।।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी।।
मातंगी अरु धूमावती माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।।
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दु:ख निवारणी।।
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी।।
कर में खप्पर खडग् विराजै।
जाको देख काल डर भाजै।।
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला।।
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत।।
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे।।
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी।।
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा।।
परी गाढ़ संतन पर जब-जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब।।
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका।।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी।।
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहीं आवें।।
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई।।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।।
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।।
शक्ति रूप को मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो।।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी।।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नाहिं कीन विलम्बा।।
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दु:ख मेरो।।
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे।।
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।।
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।।
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै।।
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।
||इति श्री दुर्गा चालीसा संपूर्ण||
श्री दुर्गा चालीसा पाठ का लाभ
मान्यताओं के अनुसार, श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आध्यात्मिक और भावनात्मक सुख की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करने से मन शांत रहता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है। श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करने से शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति मिलती है और सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। रोजाना यह पाठ करने से मानसिक शक्ति भी विकसित होने लगती है।