- हजरत इमाम हुसैन और इमाम हसन की शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है मोहर्रम।
- इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, मोहर्रम महीने के नौवें और दसवें दिन मोहर्रम मनाया जाता है।
- मोहर्रम महीने को गम का महीना भी कहा जाता है, यह महीना मुसलमानों के लिए बेहद पवित्र माना गया है।
Muharram 2021 Date and Significance: मुस्लिम समुदाय के लिए मोहर्रम बहुत अहमियत रखता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, वर्ष का पहला महीना मोहर्रम का महीना होता है। इस माह की शुरुआत से मुस्लिम समुदाय अपना नव वर्ष प्रारंभ करते हैं। इस महीने के नौवें दिन की रात्रि से आशूरा शुरू होता है और दसवें दिन तक रहता है। इस महीने की दसवीं तारीख पर मोहर्रम मनाया जाता है जिसे रोज-ए-आशूरा और यौमे आशूरा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन और इमाम हसन की कुर्बानी को याद किया जाता है। कर्बला की जंग (680 ईसवी) के दौरान हजरत इमाम हुसैन और इमाम हसन की शहादत हो गई थी।
कब है मोहर्रम 2021?
वर्ष 2021 में मोहर्रम 20 अगस्त को मनाया जा रहा है। 19 अगस्त की रात्रि से आशूरा शुरू होगा जो 20 अगस्त तक रहेगा। केंद्र सरकार के तरफ से भी यह सूचना मिली है कि इस वर्ष 20 अगस्त को मोहर्रम मनाया जाएगा। इसी दिन मोहर्रम की सरकारी छुट्टी दी जाएगी।
क्या है 10 मोहर्रम का महत्व?
मुस्लिम समुदाय के लिए मोहर्रम महीने का दसवां दिन बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन इमाम हुसैन और इमाम हसन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी थी। इन दोनों के साथ उनके 72 साथियों ने भी कुर्बानी दी थी। इराक के कर्बला शहर में ही इमाम हुसैन और इमाम हसन ने राजा यजीद के खिलाफ जंग लड़ी थी। इस शहर में ही इमाम हुसैन का मकबरा स्थापित है। इराक की राजधानी बगदाद से करीब 120 किलोमीटर दूर कर्बला शहर मौजूद है।
क्या थी जंग की वजह?
कर्बला की जंग इंसाफ और इंसानियत की लड़ाई का प्रतीक है। यह जंग करीब 1400 साल पहले हुई थी जब यजीद नाम के शासक का अत्याचार दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था। उस समय इस शासक ने खुद को खलीफा मान लिया था और अपनी हुकूमत बढ़ाने के लिए वह मासूम लोगों पर सितम ढाया करता था। उसने कई बेकसूर बच्चों, औरतों, बूढ़ों और आदमियों को अपना निशाना बनाया था। वह चाहता था कि हजरत इमाम उसके सामने घुटने टेक दें। मगर, इमाम हुसैन को यह मंजूर नहीं था। इमाम हुसैन को उसने कई यातनाएं दीं। अपने परिवार को बचाने के लिए इमाम हुसैन मक्का हज की तरफ निकल पड़े। तब उन्हें यह अंदेशा हो गया था कि यजीद के सैनिक उन पर हमला कर सकते हैं।
आखरी सांस तक लड़ते रहे इमाम हुसैन
इसके बाद उन्होंने हज ना जाकर कूफा जाने का फैसला किया। उनका मानना था कि हज जैसे पवित्र स्थान पर खून की लड़ाई नहीं होनी चाहिए। मगर रास्ते में यजीद के सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया। इमाम हुसैन और उनके परिवार को कर्बला लाया गया जहां उनके साथ कई जुल्म किए गए थे। कई दिनों तक इमाम हुसैन और उनके परिवार को पानी पीने से रोक दिया जाता था। इमाम हुसैन को अपने खेमे में लाने के लिए यजीद ने उन पर कई जुल्म ढाए। जब इमाम हुसैन का मजबूत इरादा यजीद को परेशान करने लगा तब उसने अपने सैनिकों को उन पर हमला करने का हुक्म दे दिया था। मगर, अंत तक इमाम हुसैन और उनके साथी इंसाफ के लिए लड़ते रहे।