नई दिल्ली : नारद मुनि का नाम सुनते ही आपके दिमाग में क्या आता है? एक ब्रह्मचारी जिनके मुख पर हमेशा भगवान विष्णु यानी नारायण का नाम रहता है। सादगी से रहने वाले एक ऐसे ऋषि जो भोग विलास से दूर रहते हैं। सूचनाएं इधर-उधर करते हैं और देवताओं, असुरों, इंसानों को जानकारियां देकर एक पत्रकार का काम करते हैं।
टीवी कार्यक्रमों और साहित्य में उनके बारे मिलने वाली जानकारियों से लोगों को नारद मुनि के व्यक्तित्व में सादगी की झलक मिलती है। अगर कोई कहे कि नारद मुनि की कई सारी पत्नियां थीं और वह भोग विलास में मगन रहते थे तो क्या आप यकीन करेंगे?
अगर आपको वैदिक साहित्य की ज्यादा जानकारी नहीं है तो शायद आपका जबाव ‘नहीं’ होगा क्योंकि यह बात आपके दिमाग में मौजूद नारद की छवि से मेल नहीं खाती। पर वैदिक साहित्य की माने तो यह सच है कि नारद मुनि की साठ पत्नियां थीं और वह भोग विलास में लिप्त रहते थे। यही नहीं नारद मुनि की इस बात से नाराज होकर सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी उन्हें श्राप भी दे दिया था।
दरअसल कथाओं के अनुसार नारद अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व थे और इस जन्म में उन्हें अपनी सुंदरता पर बहुत घमंड था। गंधर्व के रूप में नारद जी की बहुत सारी पत्नियां भी थीं। कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने एक सभा बुलाई जिसमें नारद अपनी पत्नियों के साथ मौजूद थे।
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इस दौरान सभा में ध्यान केंद्रित करने के बजाय नारद हास-परिहास और व्यंग्य करने में व्यस्त हो गए। उनके इस काम को देखकर ब्रह्मा जी उनसे नाराज हो गए और नारद मुनि को श्राप दे दिया कि वह शूद्र योनि में जन्म लेंगे। इस श्राप के बाद नारद का जन्म शूद्र वर्ग की एक दासी के यहां हुआ।
अपने इस जन्म में नारद ने ऋषियों और मुनियों की सेवा की। उनके सेवा भाव से ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गए। सेवा से नारद के सारे पाप धुलने के बाद ब्रह्म देव ने उन्हें आशीर्वाद दिया। शूद्र के रूप में मृत्यु होने के बाद नारद उनके पुत्र के रूप में अवतरित हुए।
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