- नवरात्रि व्रत के दौरान इस कथा का पाठ करने से सभी कष्ट दूर होते हैं
- नवरात्र व्रत की कथा ब्रह्मा जी ने बृहस्पति जी को सुनाई थी
- अगर आप भी माता का व्रत रख रहे हैं और तो हम आपको नवरात्रि व्रत की कथा बता रहे हैं
Navratri 2021 Maa Durga Vrat Katha In Hindi: देशभर में नवरात्रि की धूम है। मां आदिशक्ति की आराधना का पर्व नवरात्रि आज यानि 07 अक्टूबर से शुरू हो गया है। माता के नौ दिन व्रत रखकर उनकी आराधना की जाती है। अगर आप भी माता का व्रत रख रहे हैं और तो हम आपको नवरात्रि व्रत की कथा बता रहे हैं। कोई भी व्रत बिना व्रत कथा को पढ़े अधूरा माना गया है। कहा जाता है कि नवरात्रि व्रत के दौरान इस कथा का पाठ करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और माता की कृपा बरसती है।
नवरात्र व्रत की कथा ब्रह्मा जी ने बृहस्पति जी को सुनाई थी। ब्रह्मा जी के अनुसार- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण निवास करता था। वह मां दुर्गा की काफी पूजा किया करता था। उसके घर सुमति नाम की कन्या का जन्म हुआ। पिता प्रतिदिन देवी दुर्गा की पूजा करते तो सुमति उपस्थित रहती। एक दिन सुमति खेलती रह गई और पूजा में नहीं आई। पिता को पुत्री की इस बात पर क्रोध आया और बोला- आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा।
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पिता के वचन सुन सुमति बोली- मैं आपकी कन्या हूं तथा सब तरह आपके आधीन हूं जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से, कुष्टी से, दरिद्र से अथवा जिसके साथ चाहो मेरा विवाह कर दो लेकिन होगा वही जो मेरे भाग्य में है। ब्राह्मण ने क्रोधित हो सुमति का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा-हे पुत्री! अपने कर्म का फल भोगो, देखें भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो?
उस बालिका की दशा देख भगवती प्रगट हुईं और बोलीं कि पुत्री मैं तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं। तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो।
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उसने मां से कहा कि हे मां मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा। तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो गया।
ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! उस ब्राह्मणी की स्तुति सुन देवी प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से बोलीं- तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीध्र उत्पन्न होगा। सुमति ने मां से कहा- भगवती दुर्गे! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें।
देवी दुर्गा ने उसे बताया- आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें। घर में घट स्थापन करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है।
बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन यथा विधि हवन करें। आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अर्न्तध्यान हो गई।