- चारधाम यात्रा ओंकारेश्वर महादेव के अभिषेक के बाद पूरी होती है
- मध्यप्रदेश स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग पर करना होता है गंगाजल से अभिषेक
- पुराणों में वर्णित ही इस शिवलिंग के प्रकट होने का जिक्र और महत्व
हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा करना सबसे बड़ा तीर्थ माना गया है। चार धाम यात्रा करने के बाद यदि आपको ये लगता है कि आपकी सबसे प्रमुख धार्मिक यात्रा पूरी हो गई तो ऐसा नहीं है। आपकी यात्रा का सबसे अंतिम और महत्वपूर्ण पड़ाव मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में होगा। यहां भगवान ओंकारनाथ का जलाभिषेक करने के बाद ही चारधाम यात्रा का पुण्यफल प्राप्त होगा। खंडवा में भगवान ओंकारेश्वर का दिव्य धाम है और ये नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। भगवान महादेव यहां ओंकारनाथ के नाम से पूजे जाते हैं। यहां ओंकारनाथ का शिवलिंग स्वयंभू है और सबसे प्राचीन ज्योतिर्लिंग में आता है।
यहां हजारों वर्ष पुराना विशाल ज्योतिर्लिंग अपने चमत्कार के लिए भी जाना जाता है। ओंकारनाथ का ये मंदिर काफी विशाल है और इसके गर्भ में स्थित ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना नहीं की गई, बल्कि यहां ये शिवलिंग धरती से स्वयं ही प्रकट हुआ है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने भगवान श्रीराम के पूर्वज राजा मांधाता की घोर तपस्या के बाद यहां दर्शन दिया था और अपने आप ही यह शिवलिंग यहां प्रकट हो गया था। भूगर्भ में मां नर्मदा की मूर्ति भी स्थापित है। यहां आने वाले श्रद्धालु पहले नर्मदा में स्नान करते हैं और फिर ओंकारेश्वर के दर्शन करते हैं। वहीं जो भी चारधाम की यात्रा करता है, उसे यहां आकर जल जरूर चढ़ाना होता है। पुराणों में लिखा है कि चारधाम के तीर्थ का अंतिम पड़ाव ओंकारेश्वर ही है। यहां गंगा जल लेकर आना होता है और इस जल से भगवान ओंकारनाथ का जलाभिषेक करने के बाद ही चारों धाम यात्रा का पुण्य मिलता है।
ओंकारेश्वर में पूरे वर्ष धार्मिक आयोजन होते हैं। यहां पर देश भर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कोई समय का नहीं है। महाशिवरात्रि पर यहां सबसे ज्यादा भक्त आते हैं। मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ का महाशिवरात्रि पर दर्शन करने से सभी कष्ट दूर होते हैं।