- भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है पार्श्व या परिवर्तिनी एकादशी।
- इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है।
- पार्श्व एकादशी के दिन व्रत और भगवान विष्णु के पूजन मात्र से ही मिलता है वाजपेय यज्ञ का फल।
Parsva / parivartini ekadashi paran vidhi and time : सनातन हिंदु धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। एकादशी के दिन व्रत धारण कर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। तथा जीवन के समस्त सुखों को भोगने के बाद मानव को वैकुण्ठं लोक की प्राप्ति होती है। इन्हीं एकदशी तिथियों में से एक है पार्श्व एकादशी यानि परिवर्तिनी एकादशी।
पार्श्व / परविर्तिनी एकादशी की तिथि 2021
हिंदी पंचांग के अनुसार पार्श्व एकादशी 17 सितंबर दिन शुक्रवार को है। इस दिन व्रत कर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने समस्त दुखों का निवारण होता है और विशेष फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं एकादशी तिथि का शुभ मुहूर्त।
पार्श्व / परविर्तिनी एकादशी 2021 का पारण समय मुहूर्त
- एकादशी व्रत की शुरुआत: 17 सितंबर दिन शुक्रवार, 9:36 AM से
- एकादशी व्रत की समाप्ति: 18 सितंबर दिन शनिवार, 8:07 AM तक
- पारण का समय: सुबह 6 बजकर 07 मिनट से 6:54 AM तक।
पार्श्व / परविर्तिनी एकादशी का व्रत कैसे खोलें , Ekadashi vrat paran vidhi
एकादशी व्रत का पारण करने का सबसे उत्तम समय सूर्योदय के बाद तीन-चार घंटों के अंदर का होता है। द्वादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठ कर स्नानादि कर लें फिर भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को सच्ची श्रद्धा से याद करें और व्रत के दौरान हुई भूल के लिए क्षमा मांगिए। पूजा करने के बाद आप अपना व्रत खोल लें।
पार्श्व / परविर्तिनी एकादशी का महत्व
हिंदी पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पार्श्व एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्री हरि भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी में भगवान विष्णु 4 महीने के लिए सो जाते हैं, इसलिए इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। चातुर्मास की समाप्ति चार महीने बाद देवउठनी एकादशी के दिन होती है। इन चार महीनों के बीच भगवान विष्णु योग निद्रा में सोते हुए करवट बदलते हैं, जिससे भगवान विष्णु के शयन अवस्था में परिवर्तन होता है। इसलिए इसे पार्श्व या परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसे वामन एकादशी, जलझूलनी एकादशी, पद्मा एकादशी और डोल ग्यारस एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
पार्श्व या परिवर्तिनी एकादशी सभी एकादशी तिथियों में सबसे महत्वपूर्ण है। इस दिन व्रत कर विधि विधान से श्री हरि भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा अर्चना करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। तथा जीवन के समस्त सुखों को भोगने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।