- भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पिठोरी अमावस्या कहा जाता है।
- इस दिन महिलाएं अपने संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं व्रत।
- इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से मिलती है मुक्ति।
Pithori Amavasya 2021 date : सनातन हिंदु धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य और चंद्रमा के एक साथ होने पर यानि जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर शून्य हो जाता है तब अमावस्या की तिथि आती है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पिठोरी अमावस्या कहा जाता है। इस अमावस्या पर पितृ तर्पण आदि धार्मिक कार्यों में कुश का प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसे कुशाग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से होने वाली सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
वहीं इस दिन महिलाएं अपने संतान की लंबी आयु के लिए व्रत भी रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे ना केवल संतान को लंबी आयु की प्राप्ति होती है बल्कि मृत संतान को भी नया जीवन मिल सकता है।
Pithori Amavasya 2021 date, कुशग्रहणी अमावस्या 2021 कब है
इस साल पिठोरी अमावस्या का पावन पर्व 7 सितंबर 2021 को मनाया जाएगा। ऐसे में आइए जानते हैं क्या है पिठोरी अमावस्या का शुभ मुहूर्त और पौराणिक महत्व।
पिठोरी अमावस्या तिथि और शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि आरंभ – 6 सितंबर 2021, सोमवार को 7:40 PM से।
अमावस्या तिथि समाप्त – 7 सितंबर 2021, मंगलवार को 6:23 PM तक।
पिठोरी अमावस्या का महत्व
भाद्रपद की अमावस्या सभी अमावस्या तिथि में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। अमावस्या की यह तिथि भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से होने वाली सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है तथा सुख शांति की प्राप्ति होती है। उत्तर भारत में यह पर्व पिठोरी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है जबकि दक्षिण भारत में इसे पोलाला अमावस्या कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत रखने और मां दुर्गा की पूजा अर्चना करने से संतान को ना सिर्फ लंबी आयु की प्राप्ति होती है बल्कि उसे एक नया जीवन भी मिलता है।
पिठोरी अमावस्या की कथा
पिठोरी अमावस्या व्रत का महत्व और इसके बारे में सबसे पहले माता पार्वती ने स्वर्गलोक के राजा इंद्र की पत्नी को बताया था। मां पार्वती ने इस व्रत का महत्व बताते हुए कहा था कि इस दिन व्रत रखने से बच्चों के जीवन में खुशहाली आती है और लंबी आयु की प्राप्ति होती है।
पिठोरी अमावस्या की धार्मिक कथा
पिठोरी अमावस्या को लेकर एक धार्मिक कथा भी काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक परिवार में सात भाई थे। सभी का विवाह हो चुका था और उनके छोटे छोटे बच्चे भी थे। परिवार की सलामती के लिए सातों भाईयों की पत्नी पिठोरी अमावस्या का व्रत रखना चाहती थी। लेकिन जब पहले साल बड़े भाई की पत्नी ने व्रत रखा तो उनके बेटे की मृत्यु हो गई। दूसरे साल फिर दूसरे बेटे की मृत्यु हो गई। सातवें साल भी ऐसा ही हुआ।तब बड़े भाई की पत्नी ने अपने बेटे का शव कहीं छिपा दिया।
उस समय गांव की कुल देवी मां पोलेरम्मा गांव के लोगों की रक्षा के लिए पहरा दे रही थी।
उन्होंने दुखी मां को देखकर वजह जानना चाहा। जब बड़े भाई की पत्नी ने सारा किस्सा सुनाया तो मां पोलेरेम्मा काफी दुखी हो गई। उन्होंने कहा कि वह उन स्थानों पर हल्दी छिड़क दें जहां उसके बेटों का अंतिम संस्कार हुआ था। दुखी मां ने ऐसा ही किया, जब वह घर लौटी तो सातों पुत्र को जीवित देख उसकी खुशी का ठिकाना ना था। तभी से दक्षिण भारत में भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पोलेरम्मा अमावस्या के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन हर मां अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए पिठोरी अमावस्या का व्रत रखती हैं। आपको बता दें पोलेरम्मा माता को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है।