- एकादशी पर किया गया पिंडदान ग्यारस का श्राद्ध कहलता है
- तीन पीढ़ियां मृत्यु के बाद पितृ लोक में ही रहती हैं
- पितरों को पाप से मुक्त करता है, इस दिन का श्राद्ध
पितृ पक्ष की एकादशी के दिन फल्गु नदी में स्नान कर तर्पण का विधान है। यहां मौजूद विष्णुपद मंदिर के सामने करसिल्ली पहाड़ी पर स्थित मुंड पृष्ठा, आदि गया व धौत पद पर पिंडदान करना सबसे फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इस दिन यदि श्राद्धकर्ता एकादशी का व्रत करने के साथ पितरों को खोआ का पिंडा बना कर दान करता है, उसके पितरों के मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही श्राद्धकर्ता को भी अमोघ पुण्यलाभ मिलता है। यदि एकादशी का व्रत न कर सकें तो कम से कम पितरों के श्राद्ध के बाद दान-पुण्य जरूर करें।
ग्यारस का श्राद्ध
एकादशी के दिन उन मृतक पितरों का श्राद्ध का विधान है जिनकी तिथि एकादशी होती है। भले ही वह शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में किसी भी महीने में मृत्यु को प्राप्त हुए हों एकादशी श्राद्ध को ग्यारस श्राद्ध के रूप में भी जाना जाता है। पितृ पक्ष में पितरों के श्राद्ध को पावन श्राद्ध के रूप में माना गया है और उनका श्राद्ध कुतप या रोहिना मुहूर्त पर ही करना चाहिए, क्योंकि अपरान्ह में यह समय समाप्त नहीं हो जाता। तर्पण हमेशा श्राद्ध के अंत में किया जाता है।
तीन पीढ़ियां मृत्यु के बाद पितृ लोक में ही रहती हैं
हिंदू शास्त्रों के अनुसार पूर्वजों की तीन पीढ़ियां मृत्यु के बाद पितृ लोक में ही रहती हैं। पितृ लोक में उनकी ऊर्जा का मुख्य स्रोत पृथ्वी पर उनके वंशजों द्वारा किया गया श्राद्ध और तर्पण ही होता है। इसलिए श्राद्ध करने से लोगों को अपने पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है। विशेष रूप से पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध से। वैसे पूर्णिमा और अमावस्या के दिन भी पितरों के निमित्त दान-पुण्य और श्राद्ध का विधान है। पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध से कई गुना लाभ मिलते हैं। इस अवधि को महालया पक्ष भी कहा जाता है।
पाप से मुक्त करता है इस दिन का श्राद्ध
एकादशी श्राद्ध पर किया गया श्राद्ध पितरों के पापों को काटता है और उन्हें मृत्यु लोक मुक्त करती हैं अथवा शरीर की प्राप्ति कराता है। हर साल एक ही तिथि पर मृतकों का श्राद्ध करने का विधान होता है। हालांकि, जब पितृ पक्ष श्राद्ध किया जाता है तो केवल तिथि ही मायने रखती है। पितृ पक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध अनुष्ठान अत्यधिक लाभकारी होते हैं और पितृ अपने परिवार पर अपना आशीर्वाद बरसाते हैं। पितृ पक्ष में पितृ सूक्ष्म रूप में पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से वे प्रसाद प्राप्त करते हैं। बदले में वे अपने परिवारों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।