- पितृपक्ष में पड़ने वाले इंदिरा एकादशी व्रत का होता है विशेष महत्व
- इंदिरा एकादशी के व्रत से पितरों को होती है बैकुंठ धाम की प्राप्ति
- इंदिरा एकादशी में भगवान विष्णु के शालीग्राम स्वरूप की होती है पूजा
Pitru Paksha 2022 Indira Ekadashi Importance: अश्विन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि को पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाता है। यह एकादशी इसलिए भी खास होती है क्योंकि यह श्राद्धपक्ष यानी पितृपक्ष के दौरान पड़ती है। इस साल इंदिरा एकादशी का व्रत 21 सितंबर 2022 को रखा जाएगा। इंदिरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप की पूजा की जाती है। इंदिरा एकादशी को लेकर शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि, इस एदाकशी के प्रभाव से उन पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है जिन्हें यमराज का दंड भुगतना पड़ता है। इस व्रत को करने से उनके परिजन यमलोक की यात्रा से मुक्त होते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यदि आप पितृपक्ष में मृत पितरों का श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान किसी कारण नहीं कर पाएं तो इंदिरा एकादशी का व्रत और पूजन जरूर करें। इस एकादशी व्रत के कारण पितृ नर्क से मुक्त होकर स्वर्ग लोग चले जाते हैं। यही कारण है कि इस एकादशी को पितरों के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। राजा इन्द्रसेन ने भी अपने मृत माता-पिता को नरक की यातनाओं से मुक्त कराने के लिए इस व्रत को किया था।
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राजा इंद्रसेन ने किया था इंदिरा एकादशी का व्रत
इंदिरा एकादशी की व्रत कथा महिष्मतिपुरी के राजा इंद्रसेन से जुड़ी हुई है। भगवान कृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को इस व्रत की महिमा के बारे में बताते हुए कहते हैं। एक समय महिष्मतिपुरी के राजा इंद्रसेन को सपने में उनके मृत परिजन दिखाई दिए। उनके पिता नर्क की यातनाओं को भोग रहे थे। पिता ने राजा से कहा कि वह पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण नर्क में याताएं भोग रहे हैं। उन्होंने अपने पुत्र इंद्रसेन से कहा कि वह किसी भी तरह उसे नरक से मुक्ति दिलाए। सपने में पिता की स्थिति देख इंद्रसेन परेशान हो गया और उन्होंने नारद मुनियों को अपनी परेशानी बताई और इसके उपाय के बारे में पूछा। नारद जी ने राजा इंद्रसेन को अश्विन माह की कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी व्रत के बारे में बताया। उन्होंने राजा से कहा कि तुम इस व्रत को करो। नारद जी ने इंदिरा एकादशी व्रत की विधि के बारे में राजा को बताया। नारद जी के आदेशानुसार राजा ने विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से राजा के पिता नरक से मुक्त होकर स्वर्ग लोक चले गए।
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मान्यता है कि इस व्रत को करने से पितरों को पापों से मुक्ति मिलती है और वे बैकुंठ लोक पहुंचते हैं। इसलिए पतृपक्ष में पड़ने वाली इंदिरा एकादशी का महत्व सभी एकादशी में अधिक होता है।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)