- पाप ग्रहों के योग को समाप्त करने के लिए शिव पूजन करें
- दुर्गा सप्तशती लाभकारी होगी
- शनि स्तोत्र से पिशाच योग का प्रभाव कम होगा
Shanii and Ketu Pishach Yog Nivaran: शनि व राहु इन दोनों ग्रहों को वैदिक ज्योतिष में पाप ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। जब यह दो ग्रह आपस में संबंध बनाते हैं तो पिशाच नामक योग बनता है। अब प्रश्न यह उठता है कि किस प्रकार से शनि व राहु संबंध बनाएं तो यह योग बनता है। उससे पूर्व यह जानना आवश्यक है कि आखिर शनि व राहु से ही क्यों पिशाच योग बनता है। इस योग का क्या अर्थ है। इसके लिए शनि व राहु को समझना होगा। शनि व राहु रात्रि बली होते हैं। शनि का वर्ण श्याम है। शनि अंधेरे का ग्रह है। राहु एक माया अर्थात जादू है। जब भी शनि और राहु के बीच संबंध बनता है तो नकारात्मक शक्ति का सृजन होता है। जिसे ज्योतिष में पिशाच योग की संज्ञा दी गई है। शनि व राहु एक साथ युति कर किसी भी भाव में स्थित हों। एक दूसरे को परस्पर देखते हों। शनि की राहु या राहु की शनि पर दृष्टि हो। गोचर वश जब शनि जन्म के राहु या राहु जन्म के शनि पर से गोचर करता हो। इन चार प्रकार के शनि व राहु के मध्य संबंध बनने पर पिशाच योग बनता है।
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राहु शनि की युति होने पर ऐसे फल मिलते हैं
यदि लग्न में शनि व राहु की युति हो तो ऐसे व्यक्ति के ऊपर तांत्रिक क्रियाओं का अधिक प्रभाव रहता है। व्यक्ति हमेशा चिंतित रहता है। नकारात्मक विचार आते हैं। कोई न कोई रोग निरंतर बना रहता है। द्वितीय भाव में शनि व राहु की युति हो तो व्यक्ति के घर वाले उसके शत्रु रहते हैं। हर कार्य में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। तृतीय भाव में शनि व राहु की युति होने पर व्यक्ति भ्रमित रहता है। संतान सुख नहीं प्राप्त होता है।
शनि राहु के एक साथ होने पर जीवन उथल-पुथल से भरा होता है
चतुर्थ भाव में शनि व राहु की युति होने पर माता का पूर्ण सुख नहीं मिल पाता है। आर्थिक नुकसान होता है। पंचम भाव में युति हो तो ऐसे व्यक्तियों की शिक्षा कठिन स्थिति में पूर्ण होती है। षष्ठ भाव में युति हो तो ऐसे व्यक्ति के शत्रु अधिक होते हैं। सप्तम भाव में युति हो तो व्यक्ति को मित्रों व साझेदारों से धोखा मिलता है। अष्टम भाव में युति हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह की स्थितियाँ बनी रहती हैं।
नवम भाव में युति हो तो ऐसे व्यक्ति के भाग्य में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। दशम भाव में युति हो तो कारोबार में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। एकादश भाव में युति हो तो जुए, सट्टे द्वारा धन की प्राप्ति होती है। द्वादश भाव में युति हो तो व्यक्ति के अनैतिक संबंध बनने की अधिक संभावना रहती है।
इन उपायों को करने से लाभ की प्राप्ति होगी
1 दुर्गा सप्तशती का विधि पूर्वक पाठ व दशांश कराने से पिशाच योग के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
2 नित्य संकटमोचन हनुमाष्टक व सुंदरकांड का पाठ करने से पिशाच योग के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
3 शनि व राहु के हवनात्मक जप से भी पिशाच योग के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
4 नित्य शनि स्तोत्र का पाठ करने व अमावस्या के दिन सूर्यास्त के समय बहते पानी में नारियल प्रवाहित करने से भी पिशाच योग के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
शनि व राहु जब एक साथ किसी भी भाव में बैठते हैं तो उस भाव में बैठकर प्रत्येक भाव को देखते हैं। हर भाव का अलग फल होता है। क्योंकि यह दोनों पापी ग्रह माने जाते हैं। तो ज्यादातर इनके द्वारा बुरे प्रभाव ही दिए जाते हैं।
Spiritual (डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)