नई दिल्ली: भारतीय परंपरा में किसी वृक्ष या पौधे को अपने उपयोग के लिए लगाना, काटना या उसके पत्ते लेना आदि के लिए नियत समय यानी मुहूर्त तय किया गया है। कई जगहों पर आज भी इसी परंपरा का पालन किया जाता हैद्य
इसके साथ ही देवों के पूजन आदि के लिए भी दिन तय किए गए हैं। इनमें से रविवार को भगवान विष्णु को सर्वाधिक प्रिय माना जाता है। वहीं तुलसी भी विष्णु प्रिया मानी जाती हैं। इसलिए रविवार के दिन तुलसी के पत्ते नहीं तोड़े जाते हैं।
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वहीं सप्ताह के सातों दिनों में रवि और मंगल को क्रूर तो शनि को अशुभ वार माना जाता है। इसलिए मंगल और शनिवार को भी तुलसी के पत्ते तोड़ना निषेध है। साथ ही एकादशी भी तुलसी को प्रिय है। देवउठनी एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह संपन्न कराया जाता है। इसलिए एकादशी पर तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए।
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जानें ये नियम भी
- विष्णु पुराण के अनुसार द्वादशी, संक्रान्ति, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए।
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- बिना उपयोग तुलसी के पत्ते कभी नहीं तोड़ने चाहिए। ऐसा करना तुलसी को नष्ट करने के समान माना गया है।
- तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है। इसलिए रोजाना तुलसी के पत्ते तोड़न की आवश्यकता नहीं होती है।
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- तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं।
- इसके अलावा शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाने चाहिए।
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रविवार को न दें तुलसी को जल
माना जाता है कि विष्णु भक्त होने की वजह से रविवार को तुलसी उनकी भक्ति में लीन रहती हैं। उनकी तपस्या भंग न हो इसलिए रविवार के दिन गमले में पानी भी नहीं दिया जाता है।
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