- साईं ने अपने भक्तों को विश्वास दिलाया है कि वह सदा उनके साथ रहेंगे
- साईं कहते हैं कि सच्चे और निर्मल मन से पूजा करने वाले ही उनके भक्त हैं
- साईं मंदिर में जाने भर से भक्तों के दुख और संकट दूर हो सकते हैं
साईं बाबा अपने भक्तों के कष्ट और संकट को अपने चमत्कारिक शक्तियों से दूर कर देते थे और यही कारण है कि उन्हें ईश्वर का अवतार माना गया है। साईं बाबा फकीर थे और वह बेहद सरल तरीके से रहते थे और अपने भक्तों के अंदर भी यही सरलता खोजते थे। उन्होंने कभी कोई पूजा पद्धति या जीवन दर्शन नहीं दिया। वह अपने भक्तों को पाखंड और दिखावे से दूर रहने का ही संदेश देते थे। उनका कहना था कि सबका मालिक एक है। साईं ने अपने भक्तों को ग्यारह वचन बताए थे और उनका कहना था कि इस 11 वचन का पालन करने से मनुष्य के दुख और दर्द दूर हो जाएंगे। असल में ये 11 वचन साईं के वरदान माने गए हैं। तो आइए जानें कि साईं के 11 वचन क्या थे।
साईं बाबा के ग्यारह वचन और उनके अर्थ
1. पहला वचन था कि 'जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा।' यानी साईं अपने भक्तों को निर्मल मन से साईं स्थली यानी शिरडी आने को कहते हैं। साईं कहते हें कि यदि जो शिरडी नहीं आ सकता वह साईं मंदिर जरूर जाए। साईं के दर्शन करने भर से कष्ट दूर हो सकते हैं।
2. दूसरा वचन था कि 'चढ़े समाधि की सीढ़ी पर, पैर तले दुख की पीढ़ी पर।' यानी साईं की समाधि की सीढ़ियों पर पैर रखते ही मनुष्य के दुख और दर्द दूर हो सकते हैं। बस मन में श्रद्धा का होना जरूरी है।
3. तीसरा वचन था कि 'त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौड़ा आऊंगा।' साईं कहते है कि मैं कहीं नही हो कर भी भक्तों के लिए हमेशा खड़ा रहूंगा। मेरा शरीर भले न दिखे लेकिन मेरा आशीर्वाद हमेशा भक्तों के साथ रहेगा।
4. चौथा वचन था कि 'मन में रखना दृढ़ विश्वास, करे समाधि पूरी आस।' साईं ने अपने चौथे वचन में भक्तों को समझाया है कि हो सकता है मुझे सामने न देख कर आपका विश्वास कमजोर हो लेकिन मेरी सामाधि पर आने वाले को कभी अकेलापन या कमजोरी महससू नहीं होने पाएगी।
5. पांचवे वचन में उन्होंने कहा है कि 'मुझे सदा जीवित ही जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो।' यानी कभी उन्हें ये सोच कर दुखी न हों कि साईं उनके पास नहीं बल्कि वह सर्वत्र है। उनको सच्चे मन से याद करने पर वह पास ही महसूस होंगे। ये सत्य है और इसे स्वीकार करो।
6. छठवां वचन था 'मेरी शरण आ खाली जाए, हो तो कोई मुझे बताए।' कहते हैं साईं के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता। साईं इस बात का अपने भक्तों को विश्वास दिलाते हैं कि निर्मल और सच्चे मन से आने वाले हर इंसान की इच्छा यहां जरूर पूरी होती है।
7. सातवां वचन था 'जैसा भाव रहा जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मन का।' साईं ने अपने भक्तों को कहा है कि वह जिस भाव से उन्हें याद करेंगे उसी भाव से उन्हें पाएंगे।
8. आठवां वचन था'भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा।' साईं ने अपने भकतों को विश्वास दिलाया है कि यदि वह सच्चे और समर्पित भाव से उनके ऊपर विश्वास करेंगे तो वह उनका भार अपने ऊपर ले लेंगे।
9. नौवे वचन में साईं कहते हैं कि 'आ सहायता लो भरपूर, जो मांगा वो नहीं है दूर।' यानी जो भी भक्त उनके द्वार पर आता है वह उसकी मदद के लिए हमेशा खड़े मिलेंगे।
10. दसवें वचन में साईं ने कहा है कि 'मुझमें लीन वचन मन काया , उसका ऋण न कभी चुकाया।' यानी जो भी भक्त सच्चे मन और कर्म के साथ लीन होगा, उसके वह हमेशा ऋणि रहेंगे और उस भक्त के सारे भार वह खुद उठाएंगे।
11. ग्यारहवां वचन था 'धन्य धन्य व भक्त अनन्य , मेरी शरण तज जिसे न अन्य।' साईं कहते हैं कि जो भी भक्त अनन्य भाव से उनकी भक्ति करते हैं वही सही मायने में उनके भक्त होते हैं।