नई दिल्ली: मुसलमान हर साल रमजान के पवित्र महीने में शब-ए-कद्र मनाते हैं। इसे लैलातुल कद्र भी कहा जाता है। शब-ए-कद्र इस्लाम में सबसे पवित्र रातों में से एक है। शब-ए-कद्र की कोई निश्चित तारीख नहीं है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, शब-ए-कद्र रमजान के आखिरी 10 दिनों की विषम-संख्या वाली रातों (21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वीं) में पड़ती है। शब-ए-कद्र इन रातों से एक रात होती है। लिहाजा शबे कद्र की फजीलत हासिल करने के लिए मुसलमान इन सारी रातों में पूरी रात इबादत करते हैं। इन रातों को विशेष प्रार्थना करते हैं और दुआएं मांगी जाती हैं।
शब-ए-कद्र को कुरआन नाजिल हुआ
परंपरागत रूप से रमजान की 27वीं रात को शब-ए-कद्र के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पवित्र कुरान पहली बार इस रात को ही दुनिया में आया था। बुधवार को यानी आज 26वां रोजा और रमजान की 27वीं रात है। दरअसल, इस्लामी कैलेंडर के अनुसार नए दिन की शुरुआत सूर्यास्त के साथ होती है। शब-ए-कद्र पर मुसलमान खुदा से गुनाहों की माफी तलब करते हैं। मान्यता है कि इस रात खुदा अपने बंदों की नेक और जायज तमन्नाओं को पूरी फरमाता है। इस रात में अल्लाह की इबादत करने वाले के गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। इस एक रात की इबादत को हजार महीनों की इबादत से बढ़कर बताया गया है।
पैगंबर ने शब-ए-कद्र के बारे में क्या कहा?
शब-ए-कद्र में रातभर मुख्तलिफ इबादतें की जाती हैं। इसमें निफिल नमाजें पढ़ना, कुरआन पढ़ना, तसबीह (जाप) पढ़ना आदि। मुसलमान यह इबातत इसलिए करते हैं ताकि सारे गुनाह धुल जाएं और खुदा राजी हो जाए। वहीं, पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने भी शब-ए-कद्र की अहमियत बताई। पैगंबर ने अपने एक साथी के पूछने पर इस बारे में बताया था। पैगंबर ने बताया कि शब-ए-कद्र रमजान के आखिर अशरे (दस दिन) की ताक (विषम संख्या) रातों में है। उन्होंने इसके लिए एक खास दुआ भी बताई, जिसका मतलब है 'ऐ अल्लाह तू बेशक माफ करने वाला है और पसंद करता है माफ करने को, इसलिए मुझे माफ कर दे।'