नई दिल्ली : तमिलनाडु स्थित कांची कामकोटि पीठ के 69वें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती नहीं रहे। तमिलनाडु में हिंदू धर्म में सबसे अहम और ताकतवर समझे जाने वाले इस पीठ के पीठाधिपति के रूप में जयेंद्र सरस्वती ने बुधवार को 82 साल की आयु में अंतिम सांस ली। उनका जीवन राजनीतिक रूप से भी प्रभावशाली रहा है। उनके मुरीदों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और देश के कई अन्य नेता भी शामिल रहे हैं। राजनीतिक रूप से अपने प्रभाव के दम पर जयेंद्र सरस्वती ने कांची कामकोटि मठ को और अधिक ताकतवर बनाया।
जयेंद्र सरस्वती 22 मार्च 1954 से कांची मठ के शंकराचार्य थे। 68वें शंकराचार्य चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती ने उन्हें इस पद पर आसीन किया और उनका वास्तविक नाम, जो सुब्रमण्यन महादेव अय्यर, को बदलकर जयेंद्र सरस्वती नाम दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये कांची पीठ क्या है और शंकराचार्य कौन होते हैं और देशभर में कितने पीठ हैं? हम बताते हैं आपको इससे जुड़ी कुछ अहम जानकारियां :
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क्या है मठ?
मठ एक ऐसा आध्यात्मिक और धार्मिक केंद्र होता है, जहां आप वेदों का अध्ययन कर सकते हैं, एक तपस्वी के समान जीवन जी सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति के उद्देश्य से आध्यात्मिक अध्ययन जारी रख सकते हैं। इस परंपरा की शुरुआत का श्रेय आठवीं सदी के महान आध्यात्मिक गुरु और हिन्दू संत आदि शंकराचार्य को जाता है, जिन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा को जारी रखते हुए धर्म व आध्यात्म के प्रसार के लिए देश में चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना की और वहां अपने प्रिय शिष्यों को भेजा। ये चार मठ हैं :
- गोवर्धन मठ (पुरी, ओडिश)
- शरदा शृंगेरीपीठ (शृंगेरी, कर्नाटक)
- द्वारका पीठ (द्वारका, गुजरात)
- ज्योतिर्पीठ/जोशीमठ (चमोली, उत्तराखंड)
देश में उक्त चार पीठों के अलावे भी कई अन्य पीठ हैं :
- कांची मठ, तमिलनाडु
- बेलूर मठ, पश्चिम बंगाल
- काशी मठ, उत्तर प्रदेश
- रामचंद्रपुर मठ, कर्नाटक
- गौडपादाचार्य मठ, गोवा
कौन होते हैं शंकराचार्य?
शंकराचार्य आम तौर पर अद्वैत परम्परा के मठों के मुखिया के लिए प्रयोग की जाने वाली उपाधि है। शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है, जो बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है। इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने शुरू की थी। उन्होंने सनातन धर्म की प्रचार और प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए तथा शंकराचार्य पद पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया। तबसे इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है।
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कौन हैं आदि शंकराचार्य?
देश में चार मठों की स्थापना करने वाले आदि शंकराचार्य के बारे में माना जाता है कि उनका जन्म आठवीं सदी में भारत के दक्षिणी राज्य केरल में हुआ। हालांकि कुछ स्थानों पर उनके तमिलनाडु में जन्म लेने का जिक्र भी मिलता है। बचपन में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था, जिसके बाद उनके उपनयन संस्कार में देरी हुई और बाद में इसे उनकी मां ने संपन्न किया, जो कि सातवीं या आठवीं शताब्दी में कोई सामान्य बात नहीं थी।
बताया जाता है कि बचपन से ही उनका रुझान संन्यासी जीवन की तरफ था, लेकिन उनकी मां शरुआत में इसके लिए राजी नहीं हुईं। किवदंती है कि एक बार जब वह अपनी मां शिवतारका के साथ नदी में स्नान के लिए गए थे तो उसी बीच मगरमच्छ ने उन्हें पकड़ लिया। उस वक्त उनकी उम्र महज आठ साल थी। तब उन्होंने अपनी मां से जिद की कि वह उन्हें 'संन्यासी' बनने की अनुमति दें, वरना मगरमच्छ उन्हें मार देंगे। इस पर मां ने हामी भर दी और फिर वह मगरमच्छ के चंगुल से आजाद हो गए। इसके बाद उन्होंने अद्वैत दर्शन में उच्च शिक्षा के लिए घर छोड़ दिया।
कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का 82 साल की उम्र में निधन
बताया जाता है कि आदि शंकर ने भारतभर का भ्रमण किया। वह गुजरात से लेकर बंगाल तक गए और हिंदू धर्म से जुड़ी रूढि़वादी विचारधाराओं से लेकर बौद्ध और जैन दर्शन को लेकर चर्चा की। माना जाता है कि उनका निधन 32 साल की उम्र में उत्तराखंड के केदारनाथ में हो गया था। हालांकि कुछ स्थानों पर कांचीपुरम (तमिलनाडु) और कुछ जगह केरल में उनके देह त्यागने की बात भी कही गई है।
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